कबड्डी फिर भी फिसड्डी

Webdunia
- नवीन शर्मा

कबड्डी में भारत पाँच बार का एशियाड चैंपियन और दो बार का विश्व चैंपियन है। शून्य के आविष्कार की तरह कबड्डी का खेल भी दुनिया को भारत की देन कहा जा सकता है। रूस, इंग्लैंड, कनाडा और ईरान जैसे देश सीख ही नहीं रहे बल्कि खेल वहाँ जड़ें भी जमाने लगा हैं। पाकिस्तान और श्रीलंका में यह खासा लोकप्रिय है और बांग्लादेश का तो राष्ट्रीय खेल है।

विश्व भर में 38 से अधिक देशों ने इस खेल को सीखने या अपनाने में दिलचस्पी ली है। इन सबके बावजूद इस खेल को ओलिम्पिक के लिए मान्यता नहीं मिल रही। वजह साफ है कि इस खेल में एशिया, खासकर भारत का दबदबा है। अमेरिकी और कई यूरोपीय देश संभवतः नहीं चाहते कि किसी ऐसे खेल को मान्यता मिल जाए जिसमें उन्हें महारत हासिल नहीं है।

यह तो हाल है जब भारत ही नहीं, एशियन कंफेडरेशन और अंतरराष्ट्रीय संगठन सबमें भारत की पैठ है। अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति (आईओसी) का कहना है कि ओलिम्पिक चार्टर के चैप्टर 3 के सेक्शन 26 व 27 के मुताबिक इस खेल को तभी हरी झंडी दी जा सकती है जब कम से कम पचास नेशनल फेडरेशन यानी पचास देश इसमें भागीदारी करें।

भारत ने जब पहला विश्व कप 2004 में मुंबई में कराया था, तब इसमें 16 देशों ने भाग लिया था। उसके बाद पिछले साल भी भारत ने विश्व कप का आयोजन किया तब 18 देश शरीक हुए थे। इसी मकसद को पूरा करने के लिए पूरे विश्व को कबड्डी सिखाने के लिए भारत की ओर से कम कोशिश नहीं हो रही।

1979 में पहली बार कोचिंग देने के लिए प्रोफेसर सुंदर राम को जापान भेजा गया था। उसके बाद 1986 में कोचिंग दल रूस भेजा गया। इसी तरह अमेरिका, वेस्टइंडीज, जर्मनी और कई अफ्रीकी देशों में भी भारतीय कोशिशों के चलते खिलाड़ियों ने न केवल कबड्डी का ककहरा सीखा,बल्कि टीमें बेहतर प्रदर्शन भी करने में लगी है। दरअसल खेल अधिकारियों की आपसी खींचतान और तालमेल का अभाव भी कहीं न कहीं दोषी है।

अब 21 में अपनी मेजबानी में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों को ही लें तो इसे मुख्य स्पर्धा की जगह प्रदर्शनी खेल के रूप में रखा गया है, जबकि ये ऐसी स्पर्धा में जिसमें पदक आने की शत-प्रतिशत गारंटी है। जब अपने घर में ही कबड्डी को सम्मान नहीं मिलेगा तो हम विश्व स्तर पर कैसे इस खेल के पैरोकार हो सकते हैं। कुश्ती की तरह कबड्डी गांवों की मिट्टी में रचा-बसा खेल है। पहली सीनियर नेशनल चैंपियनशिप 1952 में हुई थी।

एशियाड में यह 1990 में शामिल हुआ और तब से हमारा एकछत्र राज रहा है। पिछले पाँच दशकों में बहुत कुछ बदला है। तकनीक, नियम और मैदान भी। नहीं बदली तो कबड्डी को उसका जायज हक न देने की प्रवृति। तमात कवायदों के बावजूद कबड्डी फिसड्डी ही पड़ी है।

बीजिंग में 1990 में हुए एशियाड की स्वर्ण पदक विजेता टीम के उप कप्तान और पूर्व कोच रणधीर सिंह मानते हैं कि कबड्डी को आज नहीं तो कल ओलिम्पिक की मान्यता मिल ही जाएगी। अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति हमारी ज्यादा अनदेखी नहीं कर सकती। इंग्लैंड और कनाडा जैसे देशों में खासी तादात में अनिवासी भारतीय बसते हैं, उनके लिए यह खेल नया नहीं है।

भारत से जुड़ाव होने के कारण वह कबड्डी से भी प्यार करते हैं। एशियाड और दक्षेस खेलों में शामिल यह स्पर्धा अमेच्योर श्रेणी के मापदंड को भी पूरी करती हैं। अर्जुन अवार्ड से सम्मानित इस खिलाड़ी को लगता है कि एक बार इसको खेल महाकुंभ में शामिल किया जाएगा तो यह देश की झोली में हाकी की तरह पदकों का अंबार लगाकर गौरवशाली दिनों की वापसी करा सकता है।

अब ऐसा नहीं है कि भारत को चुनौती नहीं मिल रही। एशियाड में हमें ज्यादातर पाकिस्तान से कड़ी चुनौती मिलती थी लेकिन विश्व कप में ईरान ने फाइनल में कड़ी टक्कर दी। इसी तरह इसी साल मदुरै में हुई महिलाओं की एशियन चैंपियनशिप में भी ईरान की टीम आगे आई। कभी जापान बेहतर था लेकिन अब ईरान उसे पछाड़ने में लगा है।

2016 में भारत ओलिम्पिक की मेजबानी का दावा करने जा रहा है, हो सकता है कि हमें मेजबानी भी मिल जाए और तब तक यह खेल ओलिम्पिक में भी शामिल हो जाए तो ऐसे में भारतीय कबड्डी टीम अपनी मेजबानी में पदक जीतकर देश को तोहफा दे सकती है।

देश के जाने-माने रेफरी आरडी कौशिक का कहना है कि जैसे-जैसे इसे लोकप्रियता मिलेगी, प्रतियोगिता का स्तर भी बढ़ेगा। हमें इस खेल को अंतरराष्ट्रीय दर्जा दिलाने के लिए ही प्रयत्नशील नहीं रहना है, बल्कि इसे देश में और लोकप्रिय भी करना होगा। वरन ा होगा यह कि कल दुनिया हमसे ही इसे सीखकर हमें ही हराने लगेगी। कहीं ऐसा न हो गुड़ गुड़ ही रह जाए और चेला शक्कर हो जाए।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

WTC Cycle में भारत का सबसे खराब प्रदर्शन, कुल 10 मैच भी नहीं जीत पाई टीम इंडिया

भारतीय टेस्ट टीम का भविष्य: बल्लेबाजी से ज्यादा चिंताजनक स्थिति गेंदबाजी की

रोहित शर्मा और रविंद्र जड़ेजा आखिरी बार टेस्ट क्रिकेट खेल चुके हैं

विराट कोहली का 'Ego' प्रॉब्लम? नहीं छोड़ पा रहे ऑफ स्टंप की गेंद, सचिन से सीख लेने का सही वक्त

अर्जुन पुरस्कार मेरा मजाक उड़ाने वालों को जवाब है: पैरा शटलर नित्या