हारकर जीतने वाले को लियोनल मेस्सी कहते हैं

Webdunia
सुशोभित सक्तावत
 
सोमवार की अलस्सुबह जिस एक चीज़ ने लियोनल मेस्सी की आत्मा को सबसे ज़्यादा कुरेदा, वह हार नहीं थी, वह हताशा भी नहीं थी, बल्कि वह शर्म थी। कोपा अमरीका फाइनल हारने के बावजूद वो उदास होता लेकिन खेल से संन्यास लेने का फ़ैसला नहीं ही करता।

यह फ़ैसला उसने इसलिए लिया क्योंकि वह पूरी दुनिया की नज़रों के सामने एक निर्णायक पेनल्टी चूक गया। यह ज़लालत उसे निगल गई। पेनल्टी चूकने के बाद उसकी देहबोली से साफ़ मालूम हो रहा था कि वह ख़ुद को कहीं छुपा लेना चाहता है। और उसे छुपने का एक यही तरीक़ा नज़र आया कि सफ़ेद नीली धारियों वाली उस अर्जेंटीनी जर्सी से ख़ुद को बाहर निकाल ले।
 
मेस्सी की यह शर्म एक दूसरे मॉर्बिड मायनों में सुखद आश्चर्य भी थी क्योंकि आज पेशेवर खेल की दुनिया बेशर्मी, बेपरवाही और मोटी चमड़ियों से भरी हुई है। पेनल्टी चूककर सेल्फ़ी लेने वाले उद्धत खिलाड़ियों से। मेस्सी जब पेनल्टी लेने जा रहा था, तब वह क्या सोच रहा था? वह सोच रहा था कि अगर मैं यह पेनल्टी चूक गया तो क्या होगा? मेस्सी बहुत पेनल्टी चूकता है। कहीं न कहीं उसे ये अपमानजनक लगता होगा। 
 
उसे यह खेल की भावना के विपरीत जान पड़ता होगा कि गोलचौकी को उसके लिए ख़ाली छोड़ दिया जाए। वह आधा दर्जन खिलाड़ियों को छकाते हुए गोल दाग़ देगा, लेकिन पेनल्टी लेना उसके मन को रुचता नहीं। नियति के द्वारा चुनी गई सोमवार की उस सुबह पेनल्टी लेते वक़्त मेस्सी सोच रहा था कि अगर उसने गेंद को गोलचौकी से ऊपर मार दिया तो क्या होगा। और उसने ठीक वैसा ही किया। उसने गेंद को गोलचौकी के ऊपर से मार दिया। 
 
बार्सीलोना के लिए 453 और अर्जेंटीना के लिए 55 संभव-असंभव-अकल्पनीय गोल करने वाला महानायक एक मामूली-सी पेनल्टी चूक गया। अर्जेंटीना एक और फ़ाइनल हार गया। मेस्सी शर्मसार था और पूरी दुनिया की आंखें उसे शर्मसार होते देख रही थीं। चिर-परिचित शोकालाप और दोषारोपण शुरू हो, इससे पहले ही उसने कह दिया, 'मैं इस सबका हिस्सा नहीं हूं।'
 
चीले ने कप जीता, कोई भी उस बारे में बात नहीं कर रहा। एलेक्सिज़ सांचेज़ टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी ठहराए गए, किसी को उससे सरोकार नहीं। सभी मेस्सी की बात कर रहे हैं। 'मेस्सी, प्लीज़ लौट आओ," यह हैशटैग चल पड़ा है। उसने एक बार फिर बाज़ी उलट दी। हारकर जीतने वाले को बाज़ीगर ही नहीं, लियोनल मेस्सी भी कहते हैं। क्योंकि जीतने वाला 'नायक' नहीं होता, जीतने वाला केवल 'विजेता' होता है। नायक के मायने कुछ और हैं।
 
मेस्सी ने सच ही कहा कि वह इस सब का हिस्सा नहीं है। वह इसके लिए बना भी नहीं है। वह अर्जेंटीनी ज़रूर है, लेकिन उसकी परवरिश स्पैनिश फ़ुटबॉल ने की है। वह हर लिहाज़ से बार्सीलोना की संतान है। वही उसकी राष्ट्रीयता भी है। इसमें वह कुछ नहीं कर सकता। आप चाहें तो उस पर देश से दग़ा करके क्लब के लिए खेलने वाले की तोहमत लगा दें, लेकिन इससे फ़र्क नहीं पड़ता। 
 
मेस्सी जानता है लातीन अमरीकी खेल शैली उसके लिए नहीं है, वह इस्पहानी शैली का खिलाड़ी है। छोटे पासेस की मदद से गेंद को ड्रिबल करने वाला, तालमेल के ज़रिये ख़ूबसूरत मैदानी गोल पिरोने वाला शास्त्रोचित सेंटर फ़ॉरवर्ड। वह मारादोना की तरह किसी भी क़ीमत पर जीतने में यक़ीन नहीं रखता। वह जीतने तक में यक़ीन नहीं रखता। वह केवल खेलना चाहता है। हमें इस बात को समझना होगा। हमें मेस्सी को समझना होगा।
 
मेस्सी शर्मसार है। टूटे मन से उसने एक फ़ैसला लिया है। हो सकता है, हताशा की पूर उतरने पर वह अपना फ़ैसला बदल ले। लेकिन इससे मेस्सी नहीं बदल जाएगा। जिस मिट्टी से वह बना है, वह नहीं बदल जाएगी। वह वही रहेगा, जो वह है। इनिएस्ता के पास पर नेमार को गेंद आगे बढ़ा देने वाला, पेनल्टी किक को सुआरेज़ को पास कर देने वाला, चार-चार डिफ़ेंडरों के व्यूह को छका देने वाला, प्वॉइंट ब्लैंक पर गोलकीपर के सिर के ऊपर से चौकी में गेंद मार देने वाला फ़ुटबॉल का फिलॉस्फ़र।
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