ओलिम्पिक के लिए दौड़ेगी 'इंडियन एक्सप्रेस'?

सुधीर शर्मा

Webdunia
शनिवार, 23 जून 2012 (14:48 IST)
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देश में अभी दो मुद्दों पर प्रतिष्ठा की लड़ाई चल रही है। एक मुद्दा है कौन बनेगा देश का राष्ट्रपति और दूसरा मुद्दा है कौन बनेगा ओलिम्पिक में पेस का जोड़ीदार।

एक तरफ विपक्ष की भूमिका निभा रहे एनडीए के घटक दलों में उम्मीदवार को लेकर दरार पड़ रही है। दूसरी ओर देश में टेनिस की सर्वोच्च संस्‍था अखिल भारतीय टेनिस संघ (एआईटीए) पेस को मनाने में जुटा है और खिलाड़ी आपस में अहंकार की लड़ाई लड़ रहे हैं।

' इंडियन एक्सप्रेस' के नाम से मशहूर पेस और महेश भूपति की जोड़ी एक पटरी पर आ नहीं रही है। दोनों में अहम को लेकर द्वंद्व चल रहा है। विश्व में नंबर वन रह चुकी और कई अंतरराष्ट्रीय खिताब हासिल कर चु‍की पेस और भूपति के बीच जबसे मतभेद हुए हैं, तबसे वे एक-दूसरे के साथ खेलना पसंद नहीं करते। जब एआईटीए ने पेस और भूपति की जोड़ी बनाकर लंदन भेजने की घोषणा की, तब दोनों की नाराजगी सामने आई।

खिलाड़ियों के अंहकार आपस में टकराने लगे। पेस ने रोहन बोपन्ना और भूपति दोनों के साथ जोड़ी बनाने की इच्छा जताई थी। पर दोनों ने पेस के साथ जोड़ी बनाने से इंकार कर दिया। इस बीच सोमदेव ने पेस को यह राहत देने की कोशिश की कि वे उनके साथ जोड़ी बनाकर ओलिम्पिक के रण में उतर सकते हैं।

इस जंग के बीच फंसे लाचार एआईटीए ने ओलिम्पिक में नाम भेजने से एक घंटे पहले दो टीमें बनाकर ओलिम्पिक में भेजने का ऐलान कर दिया। अपने से कम रैंकिंग वाले विष्णु वर्धन के साथ जोड़ी बनाने से पेस रूठ गए और उन्होंने बायकॉट करने की धमकी दे दी।

एआईटीए ने पेस में मिक्स्ड डबल में सानिया के साथ पेस की जोड़ी बनाई जबकि अपने कोच महेश भूपति के साथ उन्होंने मिक्स्ड डबल का फ्रेंच ओपन खिताब जीता था। एआईटीए का यह मरहम भी पेस के जख्मों को भरने के काम न आया और पेस ओलिम्पिक में न खेलने की धमकी पर बरकरार है।

एआईटीए उन्हें मनाने में जुटा हुआ है। उसने अपने एक चयनकर्ता को पेस को मनाने के लिए लंदन भेजा है। उधर यूकी भांभरी पेस के साथ जोड़ी बनाकर खेलने की बात कह रहे हैं। यह सारा घटनाक्रम टेनिस संगठन की नाकामी, लाचारी और खि‍लाड़ियों की अंहकार की लड़ाई को दर्शाता है।

देश के सम्मान से खुद को बड़ा समझने वाले इन खिला‍ड़ियों को अपना आदर्श मानने वाले युवाओं के बीच इस अंहकार की लड़ाई से क्या संदेश जाएगा। एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले देश में उंगली पर गिने जाने वाले खेल तो हैं जिनमें ओलिम्पिक में पदक की उम्मीद की जा सकती है। उन खेलों में भी ओलिम्पिक से पहले अंहकार का द्वंद्व हो रहा है।

हमारे खिलाड़ी तो ओलिम्पिक से पहले ही आपस में प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्या इनका अंहकार देश के सम्मान से बढकर है। पेस और भूपति दोनों के पिता प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी रह चुके हैं। देश को पदक दिलाने के लिए दोनों खिलाड़ी अपने अंहकार को छो‍ड़कर साथ खेलने के लिए राजी होंगे?

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