डोपिंग का दाग धोने को बेताब पहलवान

Webdunia
शुक्रवार, 17 सितम्बर 2010 (20:19 IST)
हाल के दिनों में डोपिंग परीक्षण में जलालत झेल चुके मेजबान पहलवान और भारोत्तोलक तीन से 14 अक्टूबर तक यहाँ होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान अपने जोरदार प्रदर्शन से इस दाग को धोने की कोशिश करेंगे।

भारत को कुश्ती और भारोत्तोलन इन दोनों ही खेलों में अपने खिलाड़ियों से ढेर सारे पदकों की उम्मीद है। आखिर इन खेलों में उसके पास कई विश्व स्तरीय खिलाड़ी मौजूद हैं। इसके अलावा राष्ट्रमंडल खेलों का इतिहास भी भारत की झोली में इन दोनों खेलों से काफी पदक आने की उम्मीद बँधाता है।

लेकिन इतने महत्वपूर्ण खेल आयोजन से पहले के डोपिंग परीक्षणों में कुछ खिलाड़ियों की नाकामी ने अन्य खिलाड़ियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ा दिया है। उन्हें न केवल शानदार प्रदर्शन कर पदक जीतने की कोशिश करनी है बल्कि डोपिंग नाकामी की वजह से आम खेलप्रेमियों के मन में बैठी शंकाओं को भी दूर करना है।

अगर भारोत्तोलन की बात की जाए तो भारत ने राष्ट्रमंडल में हमेशा ही उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। राष्ट्रमंडल देशों में भारत को इस खेल के पावरहाउस के रूप में देखा जाता है। इसकी वजह यह है कि वर्ष 1968 से लेकर 2006 तक भारतीय भारोत्तोलक 33 स्वर्ण सहित 93 पदक जीतने में सफल रहे हैं। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड ही भारत से बेहतर स्थिति में हैं जिन्होंने क्रमशः 145 और 105 पदक जीते हैं।

वर्ष 2002 में हुये मैनचेस्टर खेलों में तो भारतीय भारोत्तोलकों ने करिश्मा ही कर दिखाया था। उस समय भारत को 11 स्वर्ण सहित 27 पदक भारोत्तोलन में मिले थे। अब जबकि ये खेल अपने ही देश में घरेलू समर्थकों की मौजूदगी में होने हैं तो भारतीय भारोत्तोलकों की पूरी कोशिश होगी कि मैनेचेस्टर की कहानी को नए सिरे से लिखा जाए।

मगर हाल के दिनों में भारतीय भारोत्तोलन गलत कारणों से चर्चा में रहा है। अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन संघ द्वारा लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने के लिए भारतीय भारोत्तोलन संघ को राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति से 1.75 करोड रुपए उधार लेने पड़े। हालाँकि ऐसा करने से ही भारतीय भारोत्तोलक राष्ट्रमंडल खेल में हिस्सा लेने पर प्रतिबंधित होने से बच गए।

इसके कुछ दिन बाद ही मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल की स्वर्ण पदक विजेता महिला भारोत्तोलक सनामाचा चानू डोपिंग परीक्षण में नाकाम हो गई। राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) के परीक्षण में उनके रक्त नमून में प्रतिबंधित पदार्थ पाया गया और बाद में इसकी पुष्टि भी हो गई।

हालाँकि चानू राष्ट्रमंडल खेलों के ट्रायल में तीसरे स्थान पर रहने की वजह से भारतीय भारोत्तोलन टीम में शामिल नहीं हैं, लेकिन इससे बदनामी तो हो ही गई। इससे गत दो राष्ट्रमंडल खेलों में भारोत्तोलकों पर लगे डोपिंग के दाग फिर से सजीव हो उठे। मैनेचेस्टर राष्ट्रमंडल में सतीश राय और कृष्णन मूर्ति से पदक छीन लिये गए थे जबकि 2006 के मेलबोर्न राष्ट्रमंडल में शैलजा पुजारी, प्रमीलावल्ली बोदारी और तेजिंदर सिंह ने देश को शर्मसार किया था।

बहरहाल राष्ट्रमंडल की जोरदार तैयारियों में जुटे हुए खिलाड़ियों, उनके कोच और अधिकारियों को उम्मीद है कि इन तमाम बाधाओं के बावजूद भारत भारोत्तोलन में पदकों का ढेर लगाने में सफल रहेगा।

कुछ इसी तरह की मनोदशा से भारतीय पहलवान भी गुजर रहे हैं। इसी महीने भारत के छह पहलवान डोपिंग परीक्षण में नाकाम होकर देश की छवि को धूमिल कर चुके हैं। हालाँकि इनमें से केवल चार पहलवान सुमित (74 किग्रा), मौसम खत्री (96 किग्रा), राजीव तोमर (120 किग्रा) और महिला पहलवान गुरशरणप्रीत कौर (72 किग्रा) ही राष्ट्रमंडल खेलों में चुनौती पेश करने वाले थे। बाकी दो पहलवान राष्ट्रमंडल खेलों के लिए चुने नहीं गए थे।

बहरहाल सुशील कुमार के 66 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में गत सप्ताह विश्व चैंपियन बनने के बाद भारतीय पहलवानों के हौसले फिर से सातवें आसमान पर पहुँच चुके हैं। डोपिंग के इस दाग को धोने के लिए सुशील की अगुवाई में पहलवान भी अपने विपक्षियों को चित करने के लिए तैयार हैं। (वार्ता)

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