'क्वालिटी प्रेक्टिस' से ही शिखर को छू सकते हैं : मोनालिसा मेहता

सीमान्त सुवीर
1980 के दशक में जिन लोगों ने इंदौर में आयोजित रोमांचक टेबल टेनिस मुकाबलों को देखा होगा, उन्हें असम से आने वाली मोनालिसा बरुरा जरूर याद होंगी। ये वो जमाना था, जब कमलेश मेहता, मंजीत दुआ, सुनील बाबरस, इंदु पुरी जैसे दिग्गज खिलाड़ियों का खेल पूरे शबाब पर था और टेबल टेनिस प्रेमी अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों को टिकट लेकर देखा करते थे। उस जमाने में खिलाड़ियों को न तो सुविधाएं मिलती थीं और न ही साधन, लेकिन तीन दशक के बाद आज टेबल टेनिस की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। 
80 के दशक में बड़े-बड़े स्टार टेबल टेनिस खिलाड़ी नेहरू स्टेडियम में नगर निगम के बने सीलनभरे कमरों में रहते थे और मजाल है कि उनके चेहरे पर शिकन तक आ जाए। ये खिलाड़ी आज भी पुराने दिनों को याद करते हैं और यही यादें मोनालिसा के जेहन में आज तक बसी हुई हैं। 'रीजनल एशियन होप्स' कैंप के सिलसिले में उनसे 'अभय प्रशाल' में मुलाकात हुई। उन्होंने कमलेश मेहता से प्रेम विवाह किया था, लिहाजा वे बरुआ से मेहता हो गईं, लेकिन जेहन में अभी भी मोनालिसा बरुआ का वो जुझारु खेल याद है, जो असम की तरफ से इंदौर में आकर खेला करती थीं। 
बतौर कोच की हैसियत से आईं मोनालिसा ने कहा कि जो बच्चे इस खेल में शिखर को स्पर्श करना चाहते हैं, वे हार्डवर्क करें क्योंकि हार्डवर्क के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है। मेहनत तो करनी है, लेकिन मेहनत सोच के साथ करनी चाहिए। हम भारतीय 'टाइम' पर जाते हैं और सोचते हैं कि हम 8 से 10 घंटे तक खेल लिए...लेकिन यदि हमने सोचकर मेहनत नहीं की तो 10 घंटे खेलना भी बेकार ही जाएगा। हमें यह सोचना होगा हम कैसे 'क्वालिटी प्रेक्टिस' करें। 'क्वालिटी प्रेक्टिस' से ही हम सफलता हासिल कर सकते हैं। 
 
मोनालिसा ने कहा कि यह सही है कि रियो ओलंपिक में भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। हमारे अधिकांश प्लेयर्स विदेशों में ही कोचिंग और ट्रेनिंग लेते हैं। सब लोग मेहनत करते हैं और आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। ओलंपिक स्तर तक पहुंचने के बाद कौनसा ऐसा खिलाड़ी होगा, जो जीत के लिए अपनी जी-जान नहीं नहीं लड़ाता होगा...'गेम इज अबाउट लूजिंग एंड विनिंग'...उन लोगों ने रियो में कोशिश तो बहुत की होगी, मुझे लगता है कि इन खिलाड़ियों को सतर्क रहने की जरूरत है। उन्हें अपनी कमियों को ढूंढना होगा और उसमें सुधार करने की कोशिश करनी होगी।
 
जहां तक अच्छी कोचिंग की बात है तो इस बारे में मेरा मत है कि कोच और प्लेयर्स में बैलेंस होना चाहिए। कोच चाहे जितना सिखा दें, टेबल पर तो प्लेयर को ही खेलना है। यदि खिलाड़ी इम्प्रु नहीं करेंगे तो इसमें कोच क्या कर सकता है। असम की तरफ से 1974 में अपने टेबल टेनिस करियर की शुरुआत करने वाली मोनालिसा बरसों तक भारतीय टीम की अहम हिस्सा रहीं। तीन बार वे नेशनल के फाइनल में खेलीं और भोपाल में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में चैंपियन भी बनीं। 1987 में उन्हें 'अर्जुन अवॉर्ड' से नवाजा गया। उन्हें असम का सबसे बड़ा 'लाच्छित' अवॉर्ड भी मिला, जबकि पेट्रोलियम स्पोर्ट्‍स कंट्रोल बोर्ड ने 2014 में मोनालिसा को 'लाइफ टाइम अचीवमेंट' से सम्मानित किया। 
 
पूर्व राष्ट्रीय टेबल टेनिस चैम्पियन कमलेश मेहता से 'प्रेम विवाह' करने वाली मोनालिसा मुंबई में रहती हैं और 1994 में उन्होंने संन्यास ले लिया। 2 साल तक आराम किया और फिर सन् 2000 से कोचिंग देने का सिलसिला शुरु किया जो आज तक बदस्तूर जारी है। वे एक बेटे और बेटी की मां हैं। बेटा राज्य स्तर तक टेबल टेनिस खेला और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है जबकि बेटी की रुचि क्रिएटिव वर्क, डांसिंग और इंटीरियर डिजाइन में है। 
 
इंदौर का नाम आते ही यहां से जुड़ी हसीन यादें ताजा हो जाती हैं। वक्त के साथ यहां भी काफी बदलाव आया है। सबसे बड़ा बदलाव तो यह है कि यहां टेबल टेनिस खिलाड़ियों के लिए आदर्श वातावरण निर्मित हुआ है। 'अभय प्रशाल' बनने के बाद खिलाड़ियों को खेल के साथ ही उम्दा किस्म की हॉस्पिलिटी मिल रही है। अभय छजलानीजी ने टेबल टेनिस का जो माहौल बनाया है, वैसा माहौल देश में कहीं भी नहीं है। हरियाणा में एक सेंटर बन रहा है और मुंबई में एनएससीआई बना है लेकिन वहां भी 'अभय प्रशाल' जैसी सुविधाएं नहीं हैं। 
 
मोनालिसा के अनुसार, पिछले 35 सालों में इंदौर शहर की तस्वीर बदली, विकास हम सामने देख ही रहे हैं, एक चीज जो नहीं बदली है तो वह है मध्यप्रदेश टेबल टेनिस एसोसिएशन की मेहमाननवाजी। पहले भी हमारा बहुत ख्‍याल रखा जाता था और अब उससे कहीं ज्यादा रखा जाता है। ओम सर, जयेश आचार्य और एसोसिएशन की पूरी टीम बहुत दिल से काम करती है। सिटी जरूर चेंज हुई लेकिन एसोसिएशन के लोगों में जरा भी बदलाव नहीं आया, यही कारण है कि बार-बार इंदौर आने का मन करता है। 
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