सुखद नहीं सचिन के लिए कप्तानी

Webdunia
मंगलवार, 6 नवंबर 2007 (19:13 IST)
सचिन तेंडुलकर के 18 साल के बेहतरीन करियर में यदि उनके लिए कोई दौर बहुत उतार चढ़ाव वाला रहा तो वह कप्तानी का समय था, जिसमें कभी टीम तो कभी खुद के प्रदर्शन के कारण उन्हें आलोचनाएँ झेलनी पड़ी।

तेंडुलकर का तीसरी बार कप्तान बनना लगभग तय माना जा रहा था, लेकिन उन्होंने बीसीसीआई का ऐसा प्रस्ताव नामंजूर कर दिया जिसका एक कारण कप्तान के रूप में उनकी कुछ कड़वी यादों को भी माना जा रहा है।

पिछले दो दशक से भारतीय क्रिकेट पर विशेष छाप छोड़ने वाले इस स्टार बल्लेबाज ने 25 टेस्ट मैचों में कप्तानी क ी, लेकिन इसमें वह केवल चार में टीम को जीत दिला पाए जबकि नौ में उसे हार मिली बाकी 12 का परिणाम नहीं निकला।

इस बीच विशेषकर कप्तानी के पहले काल में तेंडुलकर की बल्लेबाजी भी प्रभावित हुई। उन्होंने 1996 से शुरू हुए अपनी कप्तानी के पहले दौर में जिन 17 मैच में टीम की कमान संभाली उनमें 45.95 की औसत से 1195 रन बन ा ए तथा 27 पारियों में उन्होंने केवल चार शतक और इतने ही अर्धशतक जमाए।

तेंडुलकर की कप्तानी में भारत ने पहला टेस्ट मैच (ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ) जीता था। उनकी अगुवाई में भारतीय टीम ने जो पहले छह मैच खेले उनमें से तीन में उसे जीत मिली, जबकि इतने ही मैच उसने गँवाए। इसके बाद मैच ड्रॉ रहने का सिलसिला शुरू हुआ और पहली बार की उनकी कप्तानी का अंतिम रिकॉर्ड था 17 मैच, तीन जीते, चार हारे, दस ड्रॉ।

यह वह दौर था जब तेंडुलकर पर कप्तानी के बोझ की चर्चा आम हो गई थी क्योंकि उनका बल्ला नहीं चल पा रहा था और रिकॉर्ड भी इसके गवाह हैं क्योंकि टेस्ट क्रिकेट में उनका औसत 55 के आसपास रहा है।

बहरहा ल, जुलाई 1999 में फिर से मोहम्मद अजहरूद्दीन को हटाकर जब तेंडुलकर को दूसरी बार कमान सौंपी गयी तो उनका बल्ला खूब चला लेकिन कप्तान के रूप में वह खासे असफल रहे और आखिर में उन्हें स्वयं कहना पड़ा कि अब बहुत हो चुका, अब कप्तानी आगे नहीं।

इस दूसरे काल में तेंडुलकर की कप्तानी में भारत ने आठ मैच खेले जिसमें केवल एक मैच में जीत पाया जबकि पाँच में उसे हार का सामना करना पड़ा और केवल दो मैच ड्रॉ हुए।

तेंडुलकर ने इस दौरान ह ाला ँकि खूब रन बटोरकर अपने उन आलोचकों को करारा जवाब दिया जो यह कहते थकते नहीं थे कि कप्तानी के दबाव का असर उनकी बल्लेबाजी पर पड़ रहा है। मुंबई के इस बल्लेबाज ने इन आठ मैच में 61.35 की औसत से 859 रन बनाए, जिसमें तीन शतक और इतने ही अर्धशतक शामिल हैं। इस बीच उनका उच्चतम स्कोर 217 रन रहा।

तेंडुलकर की कप्तानी में भारत ने जो अंतिम पाँच टेस्ट मैच खेले उन सभी में उसे हार का सामना करना पड़ा और यही कारण रहा कि दुनिया के नई सदी में पदार्पण के कुछ दिन बाद ही उन्होंने कप्तानी को अलविदा कह दिया। अब उनके तीसरी बार कप्तान बनने के आसार थे जिसकी संभावना उन्होंने स्वयं समाप्त कर दी।

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