स्वामी विवेकानंद के जीवन से संबंधित 2 प्रेरक प्रसंग, यहां पढ़ें

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1. प्रेरक प्रसंग 

एक प्रसंग के अनुसार एक दिन एक युवक स्वामी विवेकानंद के पास आया। उसने कहा- मैं आपसे गीता पढ़ना चाहता हूं। स्वामीजी ने युवक को ध्यान से देखा और कहा- पहले छ: माह प्रतिदिन फुटबॉल खेलो,‍ फिर आओ, तब मैं गीता पढ़ाऊंगा।
 
युवक आश्चर्य में पड़ गया। गीताजी जैसे पवित्र ग्रंथ के अध्ययन के बीच में यह फुटबॉल कहां से आ गया? इसका क्या काम? स्वामीजी उसको देख रहे थे।
 
उसकी चकित अवस्था को देख स्वामीजी ने समझाया- बेटा! भगवद्गीता वीरों का शास्त्र है। एक सेनानी द्वारा एक महारथी को दिया गया दिव्य उपदेश है। अत: पहले शरीर का बल बढ़ाओ। शरीर स्वस्थ होगा तो समझ भी परिष्कृत होगी। गीताजी जैसा कठिन विषय आसानी से समझ सकोगे। 
 
जो शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, सशक्त-सजग नहीं रख सकता अर्थात् जो शरीर को नहीं संभाल पाया, वह गीताजी के विचारों को, अध्यात्म को कैसे संभाल सकेगा। उसे पचाने के लिए स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन ही चाहिए। गीता के अध्यात्म को अपने जीवन में कैसे उतार पाएगा? 

2. प्रेरक प्रसंग 
 
एक दूसरी घटना के अनुसार एक दिन एक अंग्रेज मित्र तथा कु. मूलर के साथ स्वामी विवेकानंद किसी मैदान में टहल रहे थे। उसी समय एक पागल सांड तेजी से उनकी ओर बढ़ने लगा। अंग्रेज सज्जन अपनी जान बचाने को जल्दी से भागकर पहाड़ी के दूसरी छोर पर जा खड़े हुए। 
 
कु. मूलर भी जितना हो सका दौड़ी और फिर घबराकर भूमि पर गिर पड़ीं। स्वामी जी ने यह सब देखा और उन्हें सहायता पहुंचाने का कोई और उपाय न देखकर वे सांड के सामने खड़े हो गए और सोचने लगे- 'चलो, अंत आ ही पहुंचा।' उस समय उनका मन हिसाब करने में लगा हुआ था कि सांड उन्हें कितनी दूर फेंकेगा। परंतु कुछ कदम बढ़ने के बाद ही वह ठहर गया और अचानक ही अपना सिर उठाकर पीछे हटने लगा। 
 
स्वामी जी को पशु के समक्ष छोड़कर अपने कायरतापूर्ण पलायन पर वे अंग्रेज बड़े लज्जित हुए। कु. मूलर ने पूछा कि वे ऐसी खतरनाक परिस्थिति से सामना करने का साहस कैसे जुटा सके। स्वामी जी ने पत्थर के दो टुकड़े उठाकर उन्हें आपस में टकराते हुए कहा कि खतरे और मृत्यु के समक्ष वे अपने को चकमक पत्थर के समान सबल महसूस करते हैं क्योंकि मैंने ईश्वर के चरण स्पर्श किए हैं।'


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