शिक्षक जो एक माली की तरह पौधे को सींचता ह ै इस आशा में कि उसमें पुष्प खिलें औ र सुवासित कर दें संसार को अपनी महक स े
कुम्हार की तरह मिट्टी को मूर्त रूप देने हेत ु घड़े को बाहर से तो चोट देता है किंतु सहारे के लिए एक हाथ भीतर भी रखता ह ै
दीप की भाँति अपने तल में तिमिर को पनाह देकर बाती को सतत प्रज्वलित रखता ह ै ताकि यह विश्व धवल रोशनी से सराबोर रह े और अंतत: उसकी कल्पनाएँ आकार लेती हैं
वह पुष्प प्रभु के मस्तक पर शोभायमान होता ह ै वह घड़ा कई प्यासों को तृप्ति देता ह ै वह दीप मंदिर की देहरी प्रकाशित करता है
धन्य है वह शिक्षक जो अपनी तपस्या का आनंद लिए बिन ा नवीन सृजन के लिए चल पड़ता ह ै फिर एक दीप रोशन करने... फिर गीली मिट्टी को मूर्त रूप देने... फिर एक पुष्प सुवासित करने... प्रस्तुति- शीत ल मेहत ा