पंकज शुक्ला
मनुष्य के जन्म से भी पहले से उसकी गुरु है प्रकृति। वह अनगिनत आँखों, हाथों और मन से मनुष्य को कुछ न कुछ सिखाती चली आ रही है। वह गुरु होने के साथ-साथ माँ और बाप भी है। वह रक्षक भी है और न्यायाधीश भी है। वह गति और विकास का व्याकरण सिखाती है। उसे छेड़ा तो वह विनाश का सबक भी सिखाती है। प्रकृति गुरु हमें पंच रुपों में शिक्षित करती है। इस महागुरु के आगे मनुष्य सदा नतमस्तक है।
जल : वह प्रगति और प्रवाह का ककहरा सिखाती है। पानी बताता है कि हमे हर बाधा को पार करते हुए चलना है जैसे नदी चलती है पत्थरों, अवरोधों में, कभी रूक कर, कभी सकुचा कर तो विराट रूप धर कर, कभी सीधी तो कभी राह बदल कर। जल जीवन का पर्याय है। ठीक उसी तरह, जिस तरह ज्ञान सभ्यता का पर्याय है।
वायु : वायु का अर्थ वेग भी है। गुरु वायु जब अपनी सीमा तोड़ती है तो आँधी बन जाती है। मनुष्य जब सीमा तोड़ता है तो जीवन में भूचाल आता है।
पृथ्वी : पंच महाभूतों में से एक पृथ्वी के बारे में कहा गया है कि हमारे शरीर में जितना ठोस हिस्सा है वह पृथ्वी है। पृथ्वी सीख देती है कि डटे रहो। धैर्य मत त्यागो। स्थिर रहना पृथ्वी का गुण है। अपने लक्ष्य और निर्णय पर अडिग रहने का गुण सफल व्यक्तित्व का आधार है।
आग : यानी ऊर्जा। आग का पैमाना बिगड़ा तो दावानल होता है।
इसी तरह किसी भी कार्य में अति उत्साह या ज्यादा ऊर्जा लगाना उस काम को बिगाड़ देता है। खाना बनाने के लिए ऊर्जा की मात्रा भी अलग-अलग होती है। इसी तरह हमें यह सीखना होगा कि कहाँ कितनी ऊर्जा निवेश करें।
आकाशः आकाश का अर्थ है विस्तार। जीवन को आसमान जितना विस्तार देना संभव है यह उम्मीद हमें आकाश को देख मिलती है। विज्ञान कहता है कि ग्रह गुरुत्वाकर्षण बल के कारण एक नियम में बँधे हुए हैं। इसी तरह आकाश जितने विस्तार पाते हुए हम भटक न जाए इसलिए जरूरी है कि हम अपने उद्देश्य को न भूलें।