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टीचर्स डे : गुरु और शिक्षक के बीच में क्या है अंतर?

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अनिरुद्ध जोशी

हमारे देश में प्राचीनकाल से ही गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु को पूजने और सम्मान देने की परंपरा रही है। यह गुरु पूर्णिमा महान गुरु महर्षि वेद व्यास की जयंती पर मनाई जाती है। दूसरी ओर अब वर्तमान में टीसर्च डे या शिक्षक दिवस मनाने का भी प्रचलन चला है। यह दिवस महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन 5 सितंबर को मनाया जाता है। राधाकृष्णन का जन्म 1888 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव तिरुतनी में हुआ था।
 
 
गुरु परंपरा : भारत में वैदिक काल के पूर्व से ही गुरु-शिष्य परंपरा का प्रचलन रहा है। शास्त्रों के अनुसार संसार के प्रथम गुरु भगवान शिव को माना जाता है जिनके सप्तऋषि गण शिष्य थे। उसके बाद गुरुओं की परंपरा में भगवान दत्तात्रेय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएं दी थीं। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। इस तरह उनके कई हजारों शिष्य थे। भगवान राम के गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र थे तो श्रीकृष्ण के गुरु ऋषि गर्ग मुनि और सांदिपनी ऋषि सहित कई ऋषि थे। इसी तरह भगवान बुद्ध के गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि थे। आदिशंकराचार्य के गुरु  महावतार बाबा थे तो गुरु गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे‍ जिन्हें 84 सिद्धों का गुरु माना जाता है। रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी महाराज थे तो ओशो के गुरु मग्गाबाबा, पागल बाबा और मस्तो बाबा थे। 
 
गुरु और शिक्षक : गुरु और शिक्षक में बहुत ही महीन सा फर्क है। उपरोक्त सभी गुरुओं ने अपने शिष्यों को जो दिया वह आज का टीचर या शिक्षक नहीं दे सकता। 'गु' शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' शब्द का अर्थ है प्रकाश ज्ञान। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूप प्रकाश है, वह गुरु है। शास्त्रों अनुसार और गुरु-शिष्य की परंपरा अनुसार पता चलता है कि गुरु वह होता है जो आपकी नींद तोड़ दे और आपको मोक्ष के मार्ग पर किसी भी तरह धकेल दे। परंतु उस प्राचीन काल में गुरु वह भी होता था जो ऐसा नहीं करके किसी भी प्रकार की विद्या प्रदान करता था जैसे गुरु द्रोण ने कौरव और पांडवों को मोक्ष की नहीं धनुष विद्या की शिक्षा दी थी। इस तरह के गुरु भी कई थे। तब यह माना जाएगा कि वर्तमान में जो स्कूल में किसी भी प्रकार की शिक्षा दे रहे हैं वे भी गुरु ही हैं। गुरु जो आपको कोई गुर सिखाए, विद्या सिखाए, संगीत या नृत्यु सिखाए या फिजिक्स सिखाए।
 
 
मतलब यह कि दो तरह के गुरु हुए एक वे जो हमें धर्म का मार्ग बताकर मोक्ष की ओर ले जाए और दूसरे वे जो हमें सांसार का मार्ग बताकर हमें सांसार में रहने के काबिल बनाए। दोनों ही गुरुओं को अपना अपना महत्व है दोनों ही चूंकि शिक्षा ही देते हैं तो उन्हें शिक्षक भी कहा जाएगा।
 
ऐसे गुरुओं से दूर रहे : आजकल तो कोई भी व्यक्ति किसी को भी गुरु बनाकर उसकी घर में बड़ीसी फोटो लगाकर पूजा करने लगा है और ऐसा वह इसलिये करता है क्योंकि वह भी उसी गुरु की तरह गुरु घंटाल होता है। कथावाचक भी गुरु है और दुष्कर्मी भी गुरु हैं। आश्रम के नाम पर भूमि हथियाने वाले भी गुरु हैं और मीठे-मीठे प्रवचन देकर भी गुरु बन जाते हैं। इनके धनबल, प्रवचन और शिष्यों की संख्या देखकर हर कोई इनका शिष्य बनना चाहेगा क्योंकि सभी के आर्थिक लाभ जुड़े हुए हैं।
 
 
अंधे भक्तों के अंधे गुरु होते हैं। बहुत साधारण से लोग हमें गुरु नहीं लगते, क्योंकि वे तामझाम के साथ हमारे सामने प्रस्तुत नहीं होते हैं। वे ग्लैमर की दुनिया में नहीं है और वे तुम्हारे जैसे तर्कशील भी नहीं है। वे बहस करना तो कतई नहीं जानते। तुम जब तक उसे तर्क या स्वार्थ की कसौटी पर कस नहीं लेते तब तक उसे गुरु बनाते भी नहीं। लेकिन अधिकांश ऐसे हैं जो अंधे भक्त हैं, तो स्वाभाविक ही है कि उनके गुरु भी अंधे ही होंगे। मान जा सकता है कि वर्तमान में तो अंधे गुरुओं की जमात है, जो ज्यादा से ज्यादा भक्त बटोरने में लगी है। भागवत कथा बांचने वाला या चार वेद या फिर चार किताब पढ़कर प्रवचन देने वाला गुरु नहीं होता। किताब, चूरण, ऑडियो-वीडियो कैसेट, माला या ध्यान बेचने की नौकरी देने वाला भी गुरु नहीं होता। गुरु क्या है, कैसा है और कौन है यह जानने के लिए उनके शिष्यों को जानना जरूरी होता है और यह भी कि गुरु को जानने से शिष्यों को जाना जा सकता है, लेकिन ऐसा सिर्फ वही जान सकता है जो कि खुद गुरु है या शिष्य। गुरु वह है ‍जो जान-परखकर शिष्य को दीक्षा देता है और शिष्‍य भी वह है जो जान-परखकर गुरु बनाता है।

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