हमारे कानून में जो कमियाँ हैं, उनमें एक कमी तो यह है कि वो मशीनी है। हर चीज़ें सबूतों पर तुलती हैं फिर भी मालूम पड़ता है कि इंसाफ कम मिला, कीमत ज्यादा लगी। हमारी अदालतों और कानून को कैसा होना चाहिए यह किरण बेदी के टीवी शो "आपकी कचहरी" में देखा जा सकता है। पिछले दिनों शुरू हुए इस शो में अदालत नकली होती है, पर मुद्दई यानी पक्षकार असली। इसमें मुर्दा सबूत के आधार पर फैसला कभी एक तरफा नहीं होता। अगर किरण बेदी की इस कचहरी जैसी हर शहर में एक दो कचहरियाँ हों, तो अदालतों में इतने मुकदमे नहीं हों जितने इस वक्त हैं। किरण बेदी के शो की खास बात यह है कि यह बहुत मानवीय है। बिलकुल अपनी पुरानी पंचायतों जैसा, जो आजकल खूनी फैसले देने लगी हैं और विकृत हो गई हैं।
किरण बेदी के मन में समाज के लिए बहुत कुछ करने की आग है। जब पद पर रहते हुए उन्होंने तिहाड़ जैसी जेल को अपने हाथ में लिया, तब लोगों को लगा कि किरण बेदी क्या कर पाएँगी, पर किरण बेदी ने वहाँ भी बहुत कुछ करके दिखा दिया। मानवीयता और करुणा के साथ बेदी ने जेल को सुधारने की हर कोशिश की और कैदियों के साथ उनका आत्मीय रिश्ता बन गया। फिर उनके साथ नाइंसाफी हुई और जो ओहदा उन्हें मिलना था, वो उन्हें उलाँघकर किसी और को दे दिया गया। बहरहाल किरण बेदी की कचहरी में लोगों को इंसाफ ही नहीं मिलता मदद भी मिलती है। आम अदालत में यदि कोई भूखा आदमी रोटी चुराने के केस में जाएगा और जुर्म साबित होने पर (और नंगे-भूखों पर जुर्म साबित हो ही जाते हैं) कैद की सज़ा मिलेगी। किरण बेदी की कचहरी में अगर कोई भूखा जाए, तो उसे पहले खाना खिलाया जाएगा, फिर उसके रोज़गार का कोई इंतज़ाम किया जाएगा, ताकि वो दोबारा भूख के चलते चोरी न करे। सुनते हैं चीन में एक संत हुए लाओत्से नाम के। उन्हें एक बार जज बना दिया गया। उन्होंने चोर को जितनी सज़ा चोरी के लिए दी उतनी ही साहूकार को जमाखोरी के लिए भी दी।
किरण बेदी की कचहरी में गरीबों को मदद भी दी जाती है। कई फरियादी वहाँ से दस-बीस और तीस हज़ार रुपए मदद के रूप में पा चुके हैं। यह सच है कि किरण बेदी की कचहरी की कोई कानूनी हैसियत नहीं है, और वहाँ फौजदारी मुकदमे नहीं चलते, पर यह सच है कि किरण बेदी जिस तरह इंसाफ करती हैं, उसके बाद शायद ही कोई अपनी बात से फिरता हो। हमारी अदालतों को जितना मानवीय, जितना करुणापूर्ण, जितना संवेदनशील होना चाहिए, उतनी ही किरण बेदी की कचहरी है। खास बात यह कि किरण बेदी की कचहरी में कोई वकील नहीं होता, सोचिए कि अगर दोनों पक्ष बिना वकील के अदालत के सामने खड़े हों, तो किसी भी जज के लिए सच को भाँपना और फैसला सुनाना क्या ज्यादा आसान नहीं हो जाए? किरण बेदी की कचहरी से एक रास्ता दिखाई देता है, जो सुलह, शांति और सच्चे इंसाफ का रास्ता है।