राहुल-डिम्पी : ये तो होना ही था...

दीपक असीम
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तय था कि ये होगा, मगर अंदेशा नहीं था कि इतनी जल्दी होगा। जिस रिश्ते में दो तरफा स्वार्थ, लालच और एक दूसरे को बेवकूफ बनाने की मंशा हो, वो रिश्ता गंदा होता है। भले ही उस रिश्ते को जोड़ने के लिए पवित्र मंत्र और आसमानी आयतें ही क्यों न पढ़ी जाएँ। डिंपी और राहुल महाजन का रिश्ता भी ऐसा ही है।

राहुल महाजन में वो काबलियत नहीं है कि किसी सुंदर और युवा लड़की का प्यार हासिल कर सकें। वर के हिसाब से वे भले ही आदर्श हों, नर के लिहाज से औसत हैं। खूबसूरत वे सिरे से नहीं हैं। जवान भले ही कहलाएँ, नौजवान नहीं हैं। जबकि डिंपी नौजवान है।

फिर चरित्र राहुल का बहुत ही कमजोर है। बिग बॉस में लोगों ने देखा था कि उनमें साहस भी नहीं है। लंपट वो पहले दर्जे के हैं। न वो ठीक से बोल पाते हैं और न उनकी हँसी में कोई गूँज है। उलटे हँसना तो उनका ऐसा है कि सुनकर हँसी आती है।

वे किसी भी लड़की के सपनों के राजकुमार तो क्या, आम आदमी तक नहीं हैं। उनकी एकमात्र काबलियत यह है कि उनके पिता प्रमोद महाजन उनके लिए दूसरों के खून पसीने से कमाया करोड़ों-करोड़ रुपए छोड़ गए हैं।

डिंपी और उसके परिजनों की नजर इस रुपए पर थी/है। राहुल की उम्र और राहुल जैसे रंग रूप का कोई युवक अगर छोटी-मोटी नौकरी में होता और उसका रिश्ता डिंपी के लिए आता, तो क्या डिंपी और उसके घरवाले कबूल करते?

पैसों के लिए बिकने वालों को बुरा कहते हैं और "बिकने वालियों" को तो और भी बुरा कहते हैं। राहुल को डिंपी चाहिए थी, डिंपी एंड कंपनी को राहुल का पैसा चाहिए था। दोनों की ख्वाहिश वक्ती तौर पर पूरी हो गई, मगर चार-पाँच महीने में ही दोनों को लग रहा है कि घाटे में तो हम रहे। ऐसे सौदों में ऐसा ही होता है।

डिंपी को खटकता है कि उसने अपनी आजादी खो दी। राहुल को लगता है कि उसे डिंपी पूरी नहीं मिली। डिंपी बहुत जीवंत लड़की है। उसकी एक सहेली टीवी पर बता रही थी कि वो अकसर कोलकाता आती है और अपने पुराने बॉयफ्रेंड से बिंदास मिलती है। राहुल से डिंपी को मिला है अकूत पैसा, शोहरत, समाज में एक मुकाम और थोड़ी-सी सियासी ताकत।

राहुल को मिली है एक नौजवान खूबसूरत लड़की, जिसके वे यूँ योग्य नहीं थे। तो दोनों तरफ जब सौदा करने वाले इतने "निश्छल","सज्जन" और "ईमानदार" हों, तो ऐसी ही स्थितियाँ बनती हैं।

कुछ लोग कह रहे हैं कि ये डिंपी का पब्लिसिटी स्टंट है वरना डिंपी मीडिया के पास जाने की बजाय थाने जाती। राहुल महाजन परिवार के लिए थाना क्या मायने रखता है? उनका असल थाना तो मीडिया ही है। सो शायद इसमें षड्यंत्र और साजिश सूँघने वाले सही नहीं हैं।

मारपीट का पुराना रेकार्ड राहुल बाबू का है। स्कूल में कमजोर बच्चे उनसे इसलिए पिट जाते होंगे कि वे बड़े बाप के बेटे थे। आजकल की लड़कियाँ इस रौब में नहीं आतीं। श्वेता उनकी बचपन की दोस्त थी, पर राहुल ने अपनी हरकतों से उन्हें खो दिया।

फिलहाल डिंपी वापस राहुल के पास चली गई हैं, पर अब इस गंदे रिश्ते पर लगा रस्मों का इत्र उड़ चुका है और टीवी के पर्दे से ऐसी बदबू उठ रही है कि जी मिचला रहा है।"

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