सारे दरबारी एक- दूसरे का मुंह देखने लगे। तेनालीराम ने उठकर कहा, 'महाराज यह जिम्मेदारी मैं लूंगा।'
वहां से उठकर तेनालीराम नगर के एक प्रमुख जौहरी के यहां गया। उसने अपनी योजना उसे बताई और घर लौट गया। उस जौहरी ने अगले दिन अपने यहां आभूषणों की एक बड़ी प्रदर्शनी लगवाई। रात होने पर उसने सारे आभूषणों को एक तिजोरी में रखकर ताला लगा दिया।
आधी रात को चोर आ धमके। ताला तोड़कर तिजोरी में रखे सारे आभूषण थैले में डालकर वे बाहर आए। जैसे ही वे सेठ की हवेली से बाहर जाने लगे सेठ को पता चल गया, उसने शोर मचा दिया।
आस-पास के लोग भी आ जुटे। तेनालीराम भी अपने सिपाहियों के साथ वहां आ धमके और बोले, 'जिनके हाथों में रंग लगा हुआ है, उन्हें पकड़ लो।' जल्द ही सारे चोर पकड़े गए। अगले दिन चोरों को दरबार में पेश किया गया। सभी के हाथों पर लगे रंग देखकर राजा ने पूछा, 'तेनालीरामजी यह क्या है?'
' महाराज हमने तिजोरी पर गीला रंग लगा दिया था ताकि चोरी के इरादे से आए चोरों के शरीर पर रंग चढ़ जाए और हम उन्हें आसानी से पकड़ सकें।'
राजा ने पूछा, 'पर आप वहां सिपाहियों को तैनात कर सकते थे।'
' महाराज इसमें उनके चोरों से मिल जाने की संभावना थी।'
यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की खूब प्रशंसा की ।