पुरोहित ने हलवा, मालपुए, पिस्ते की बर्फी आदि कई मिठाइयां गिना दीं।
राजा कृष्णदेव राय ने सभी मिठाइयां मंगवाईं और पुरोहित से कहा- ‘जरा खाकर बताइए, इनमें सबसे अच्छी कौन-सी है?’ पुरोहित को सभी मिठाइयां अच्छी लगती थीं। किस मिठाई को सबसे अच्छा बताता?
तेनालीराम ने कहा, ‘सब अच्छी हैं, मगर वह मिठाई यहां नहीं मिलेगी।’
‘कौन-सी मिठाई?’ राजा कृष्णदेव राय ने उत्सुकता से पूछा- ‘और उस मिठाई का नाम क्या है?’
‘नाम पूछकर क्या करेंगे महाराज। आप आज रात को मेरे साथ चलें, तो मैं वह मिठाई आपको खिलवा भी दूंगा।’
राजा कृष्णदेव राय मान गए। रात को साधारण वेश में वे पुरोहित और तेनालीराम के साथ चल पड़े। चलते-चलते तीनों काफी दूर निकल गए। एक जगह दो-तीन आदमी अलाव के सामने बैठे बातों में खोए हुए थे। ये तीनों भी वहां रुक गए। इस वेश में लोग राजा को पहचान भी न पाए। पास ही कोल्हू चल रहा था।
तेनालीराम उधर गए और कुछ पैसे देकर गरम-गरम गुड़ ले लिया। गुड़ लेकर वे पुरोहित और राजा के पास आ गए। अंधेरे में राजा और पुरोहित को थोड़ा-थोड़ा गरम-गरम गुड़ देकर बोले- ‘लीजिए, खाइए, जाड़े की असली मिठाई।’ राजा ने गरम-गरम गुड़ खाया तो बड़ा स्वादिष्ट लगा।