गर्मियों में एक दिन नगर के बाहर से कुछ गांव वाले तेनालीराम के पास पहुंचे, वे सभी गृहमंत्री के विरुद्ध शिकायत लेकर आए थे। तेनालीराम ने उनकी शिकायत सुनी और उन्हें न्याय प्राप्त करने का रास्ता बताया।
तेनालीराम अगले दिन राजा से मिले और बोले, 'महाराज! मुझे विजयनगर में कुछ चोरों के होने की सूचना मिली है। वे हमारे कुएं चुरा रहे हैं।'
इस पर राजा बोले, 'क्या बात करते हो, तेनाली! कोई चोर कुएं को कैसे चुरा सकता है?'
' महाराज! यह बात आश्चर्यजनक जरूर है, परंतु सच है। वे चोर अब तक कई कुएं चुरा चुके हैं।' तेनालीराम ने बहुत ही भोलेपन से कहा।
उसकी बात को सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी हंसने लगे।
महाराज ने कहा, 'तेनालीराम, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है। आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? तुम्हारी बातों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता।'
' महाराज! मैं जानता था कि आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करंगे इसलिए मैं कुछ गांव वालों को साथ साथ लाया हूं। वे सभी बाहर खड़े हैं। यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है तो आप उन्हें दरबार में बुलाकर पूछ लीजिए। वे आपको सारी बात विस्तारपूर्वक बता दंगे।'
राजा ने बाहर खड़े गांव वालों को दरबार में बुलवाया। एक गांव वाला बोला, 'महाराज! गृहमंत्री द्वारा बनाए गए सभी कुएं समाप्त हो गए हैं, आप स्वयं देख सकते हैं।'
राजा ने उनकी बात मान ली और गृहमंत्री, तेनालीराम, कुछ दरबारियों तथा गांव वालों के साथ कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए। पूरे नगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानो तथा गांवों में कोई कुआं नहीं है।
राजा को यह पता लगते देख गृहमंत्री घबरा गया। वास्तव में उसने कुछ कुओं को ही बनाने का आदेश दिया था। बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधाओं पर व्यय कर दिया।
अब तक राजा भी तेनालीराम की बात का अर्थ समझ चुके थे। वे गृहमंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनालीराम बीच में बोल पड़ा, 'महाराज! इसमें इनका कोई दोष नहीं है। वास्तव में वे जादुई कुएं थे, जो बनने के कुछ दिन बाद ही हवा में समाप्त हो गए।'
अपनी बात समाप्त कर तेनालीराम गृहमंत्री की ओर देखने लगा। गृहमंत्री ने अपना सिर शर्म से झुका लिया।
राजा ने गृहमंत्री को बहुत डांटा तथा उसे सौ और कुएं बनवाने का आदेश दिया। इस कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनालीराम को सौंपी गई ।