उनकी बात बड़े ध्यान से सुनने के बाद तेनालीराम बोला- 'सचमुच, यह एक बड़ी समस्या है, परंतु उस योद्धा को तो कोई योद्धा ही हरा सकता है। मैं कोई योद्धा तो हूं नहीं, बस एक विदूषक हूं। इसमें मैं क्या कर सकता हूं?'
तेनालीराम की यह बात सुन सभी योद्धा निराश हो गए, क्योंकि उनकी एकमात्र आशा तेनालीराम ही था। जब वे निराश मन से जाने लगे तो तेनालीराम ने उन्हें रोककर कहा- 'मैं उत्तर भारत के उस वीर योद्धा से युद्ध करूंगा और उसे हराऊंगा, परंतु तुम्हें वचन देना कि जैसा मैं कहुंगा, तुम सब वैसा ही करोगे।' उन लोगों ने तुरंत वचन दे दिया।
वचन लेने के बाद तेनालीराम बोला- 'शक्ति परीक्षण के दिन तुम सभी पदक पहना देना और उस योद्धा से मेरा परिचय अपने गुरु के रूप में कराना और मुझे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाना।'