बहुरुपिए ने कहा, ‘मैं शेर का स्वांग बहुत अच्छा करता हूं महाराज, लेकिन उसमें खतरा है। उसमें कोई घायल भी हो सकता है और मर भी सकता है। इस स्वांग के लिए आपको मुझे एक खून माफ करना पड़ेगा।’
महाराज ने उनकी शर्त मान ली। ‘एक शर्त और है महाराज। मेरे स्वांग के समय तेनालीराम भी दरबार में अवश्य उपस्थित रहें,’ बहुरुपिया बोला।
‘ठीक है, हमें यह शर्त भी स्वीकार है,’ महाराज ने सोचकर उत्तर दिया।
इस शर्त को सुनकर तेनालीराम का माथा ठनका। उसे लगा कि यह अवश्य कोई शत्रु है, जो स्वांग के बहाने मेरी हत्या करना चाहता है। अगले दिन स्वांग होना था। तेनालीराम अपने कपड़ों के नीचे कवच पहनकर आया ताकि अगर कुछ गड़बड़ हो तो वह अपनी रक्षा कर सके। स्वांग शुरू हुआ।
बहुरुपिए की कला का प्रदर्शन देखकर सभी दंग थे। कुछ देर तक उछलकूद करने के बाद अचानक बहुरुपिया तेनालीराम के पास पहुंचा और उस पर झपट पड़ा। तेनालीराम तो पहले से ही तैयार था। उसने धीरे से अपने हथनखे से उस पर वार किया। तिलमिलाता हुआ बहुरुपिया उछलकर जमीन पर गिर पड़ा।
तेनालीराम पर हुए आक्रमण से राजा भी एकदम घबरा गए थे। कहीं तेनालीराम को कुछ हो जाता तो? उन्हें बहुरुपिए की शर्तों का ध्यान आया। एक खून की माफी और तेनालीराम के दरबार में उपस्थित रहने की शर्त। अवश्य दाल में कुछ काला है।