बस यह सुनते ही महाराज आग-बबूला हो गए। चुगलखोर दरबारी आगे बोला- आपने साफ कहा था कि दरबार में आने पर कोड़े पड़ेंगे, इसकी भी उसने कोई परवाह नहीं की। अब तो तेनालीराम आपके हुक्म की भी अवहेलना करने में जुटा है।
राजा दरबार में पहुंचे। उन्होंने देखा कि सिर पर मिट्टी का एक घड़ा ओढ़े तेनालीराम विचित्र प्रकार की हरकतें कर रहा है। घड़े पर चारों ओर जानवरों के मुंह बने थे।
' तेनालीराम! ये क्या बेहुदगी है। तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया हैं', महाराज ने कहा। दंडस्वरूप कोड़े खाने के तैयार हो जाओ।
' मैंने कौन-सी आपकी आज्ञा नहीं मानी महाराज?'
घड़े में मुंह छिपाए हुए तेनालीराम बोला- 'आपने कहा था कि कल मैं दरबार में अपना मुंह न दिखाऊं तो क्या आपको मेरा मुंह दिख रहा है। हे भगवान! कहीं कुम्भकार ने फूटा घड़ा तो नहीं दे दिया।'
यह सुनते ही महाराज की हंसी छूट गई। वे बोले- 'तुम जैसे बुद्धिमान और हाजिरजवाब से कोई नाराज हो ही नहीं सकता। अब इस घड़े को हटाओ और सीधी तरह अपना आसन ग्रहण करो।'