दरबार के आवश्यक काम निबटाने के बाद राजा जब भोजन के लिए अपने भोजन कक्ष में गए तो भोजन परोसा गया। अभी राजा ने पहला कौर ही उठाया था कि खाने में मक्खी दिखाई दी। देखते-ही-देखते उनका मन खराब होने लगा और वे भोजन छोड़कर उठ गए। दोबारा भोजन तैयार होते-होते इतना समय बीत गया कि राजा की भूख ही मिट गई।
राजा ने सोचा- ‘अवश्य यह रामैया मनहूस है तभी तो आज सारा दिन भोजन नसीब नहीं हुआ।’
क्रोध में आकर राजा ने आज्ञा दी कि इस मनहूस को फांसी दे दी जाए। राज्य के प्रहरी उसे फांसी देने के लिए ले चले। रास्ते में उन्हें तेनालीराम मिला। उसने पूछा तो रामैया ने उसे सारी बात कह सुनाई।
तेनालीराम ने उसे धीरज बंधाया और उसके कान में कहा, ‘तुम्हें फांसी देने से पहले ये तुम्हारी अंतिम इच्छा पूछेंगे।
तुम कहना, ‘मैं चाहता हूं कि मैं जनता के सामने जाकर कहूं कि मेरी सूरत देखकर तो खाना नहीं मिलता, पर जो सवेरे-सवेरे महाराज की सूरत देख लेता है उसे तो अपने प्राण गंवाने पड़ते हैं।’
यह समझाकर तेनालीराम चला गया। फांसी देने से पहले प्रहरियों ने रामैया से पूछा, ‘तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?’