सारे राज्य में राजा के सपने की चर्चा होने लगी। सभी सोचते कि राजा कृष्णदेव राय को न जाने क्या हो गया है। कभी सपने भी सच होते हैं? पर राजा से यह बात कौन कहे?
राजा ने अपने राज्य के सभी कारीगरों को बुलवाया। सबको उन्होंने अपना सपना सुना दिया। कुशल व अनुभवी कारीगरों ने राजा को बहुत समझाया कि महाराज, यह तो कल्पना की बातें हैं। इस तरह का महल नहीं बनाया जा सकता, लेकिन राजा के सिर पर तो वह सपना भूत की तरह सवार था।
कुछ धूर्तों ने इस बात का लाभ उठाया। उन्होंने राजा से इस तरह का महल बना देने का वादा करके काफी धन लूटा। इधर सभी मंत्री बेहद परेशान थे। राजा को समझाना कोई आसान काम नहीं था। अगर उनके मुंह पर सीधे-सीधे जाता कि वे बेकार के सपने में उलझे हैं तो महाराज के क्रोधित हो जाने का भय था।
मंत्रियों ने आपस में सलाह की। अंत में फैसला किया गया कि इस समस्या को तेनालीराम के सिवा और कोई नहीं सुलझा सकता। तेनालीराम कुछ दिनों की छुट्टी लेकर नगर से बाहर कहीं चला गया। एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति राजा कृष्णदेव राय के दरबार में रोता-चिल्लाता हुआ आ पहुंचा।
राजा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘तुम्हें क्या कष्ट है? चिंता की कोई बात नहीं। अब तुम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में हो। तुम्हारे साथ पूरा न्याय किया जाएगा।’
‘मैं लुट गया, महाराज। आपने मेरे सारे जीवन की कमाई हड़प ली। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, महाराज। आप ही बताइए, मैं कैसे उनका पेट भरूं?’ वह व्यक्ति बोला।
‘क्या हमारे किसी कर्मचारी ने तुम पर अत्याचार किया है? हमें उसका नाम बताओ’, राजा ने क्रोध में कहा।
‘नहीं, महाराज, मैं झूठ ही किसी कर्मचारी को क्यों बदनाम करूं?’ बूढ़ा बोला।
‘तो फिर साफ क्यों नहीं कहते, यह सब क्या गोलमाल है? जल्दी बताओ, तुम चाहते क्या हो?’
‘महाराज अभयदान पाऊं तो कहूं।’ ‘हम तुम्हें अभयदान देते हैं’, राजा ने विश्वास दिलाया।
‘महाराज, कल रात मैंने सपने में देखा कि आप स्वयं अपने कई मंत्रियों और कर्मचारियों के साथ मेरे घर पधारे और मेरा संदूक उठवाकर आपने अपने खजाने में रखवा दिया। उस संदूक में मेरे सारे जीवन की कमाई थी। पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं’, उस बूढ़े व्यक्ति ने सिर झुकाकर कहा।
‘विचित्र मूर्ख हो तुम! कहीं सपने भी सच हुआ करते हैं?’ राजा ने क्रोधित होते हुए कहा।