राजा को यह सलाह पसंद आ गई। उन्होंने एक हजार बढ़िया अरबी घोड़े खरीदे और नागरिकों को बांट दिए। हर घोड़े के साथ घास, चने और दवाइयों के लिए खर्चा आदि दिया जाना भी तय हुआ। यह फैसला किया गया कि हर तीन महीनों के बाद घोड़ों की जांच की जाएगी।
तेनालीराम ने एक घोड़ा मांगा तो उसको भी एक घोड़ा मिल गया। तेनालीराम घोड़े को मिलने वाला सारा खर्च हजम कर जाता। घोड़े को उसने एक छोटी-सी अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया जिसकी एक दीवार में जमीन से चार फुट की ऊंचाई पर एक छेद था। उसमें से मुट्ठीभर चारा तेनालीराम अपने हाथों से ही घोड़े को खिला देता।
भूखा घोड़ा उसके हाथ में मुंह मारकर पल-भर में चारा चट कर जाता। तीन महीने बीतने पर सभी से कहा गया कि वे अपने घोड़ों की जांच करवाएं। तेनालीराम के अतिरिक्त सभी ने अपने घोड़ों की जांच करवा ली।
राजा ने तेनालीराम से पूछा, ‘तुम्हारा घोड़ा कहां है?’
‘महाराज, मेरा घोड़ा इतना खूंखार हो गया है कि मैं उसे नहीं ला सकता। आप घोड़ों के प्रबंधक को मेरे साथ भेज दीजिए, वही इस घोड़े को ला सकते हैं।’ तेनालीराम ने कहा।
घोड़ों का प्रबंधक, जिसकी दाढ़ी भूसे के रंग की थी, तेनालीराम के साथ चल पड़ा।
कोठरी के पास पहुंचकर तेनालीराम बोला, ‘प्रबंधक, आप स्वयं देख लीजिए कि यह घोड़ा कितना खूंखार है इसीलिए मैंने इसे कोठरी में बंद कर रखा है।’