उस समय के नियमानुसार किसी भी चोर को जब पकड़ा जाता था तो उसे विजयनगर की सड़कों पर घुमाया जाता था। अन्य लोगों की तरह तेनालीराम ने भी सुना कि उसके पुत्र को गुलाब चुराते हुए पकड़ा गया है।
जब तेनालीराम का पुत्र सिपाहियों के साथ घर के पास से गुजर रहा था, तो उसकी पत्नी तेनाली से बोली, 'अपने पुत्र की रक्षा के लिए आप कुछ क्यों नहीं करते?'
इस पर तेनालीराम अपने पुत्र को सुनाते हुए जोर से बोला, 'मैं क्या कर सकता हूं? हां यदि वह अपनी तीखी जुबान का प्रयोग करे, तो हो सकता है कि स्वयं को बचा सके।'
तेनालीराम के पुत्र ने जब यह सुना तो वह कुछ समझ नहीं पाया। वह सोचने लगा कि पिताजी की इस बात का आखिर क्या अर्थ हो सकता है? पिताजी ने जरूर उसे ही सुनाने के लिए यह बात इतनी जोर से बोला है। मगर तीखी जुबान के प्रयोग करने का क्या मतलब हो सकता है? यदि वह इसका अर्थ समझ जाए तो वह बच सकता है।
कुछ क्षण पश्चात उसे समझ में आ गया कि पिता के कहने का क्या अर्थ है? अपनी तीखी जुबान को प्रयोग करने का अर्थ था कि वह मीठे गुलाबों को किसी को दिखने से पहले ही खा ले। अब क्या था, वह धीरे-धीरे गुलाब के फूलों को खाने लगा। इस प्रकार महल में पहुंचने से पहले ही वह सारे गुलाब खा गया और सिपाहियों ने उस पर कोई ध्यान भी नहीं दिया।
दरबार में पहुंचकर सिपाहियों ने तेनालीराम के पुत्र को राजा के सामने प्रस्तुत किया और कहा, महाराज! इस लड़के को हमने गुलाब चुराते हुए रंगेहाथों पकड़ा।'
' अरे! इतना छोटा बालक और चोर', राजा ने आश्चर्य से पूछा।
इस पर तेनालीराम का पुत्र बोला, 'महाराज, मैं तो केवल बगीचे से जा रहा था, परंतु आपको प्रसन्न करने के लिए इन्होंने मुझे पकड़ लिया। मुझे लगता है कि वास्तव में ये स्वयं ही गुलाब चुराते होंगे। मैंने कोई गुलाब नहीं चुराया। क्या आपको मेरे पास कोई गुलाब दिखाई दे रहा है? यदि मैं रंगेहाथों पकड़ा गया हूं, तो मेरे हाथो में गुलाब होने चाहिए थे।'
गुलाबों को न पाकर पहरेदार अचंभित हो गए। राजा उन पर क्रोधित होकर बोले, 'तुम एक सीधे-सादे बालक को चोर कैसे कह सकते हो? इसे चोर सिद्ध करने के लिए तुम्हारे पास कोई सबूत भी नहीं है। जाओ और भविष्य में बिना सबूत के किसी पर अपराधी होने का आरोप मत लगाना।'
इस प्रकार तेनालीराम का पुत्र तेनाली की बुद्धिमता से स्वतंत्र हो गया ।
( समाप्त)