‘महाराज, तेनालीराम को झांकी बनानी आती ही कहां है? वह देखिए, उधर उस टीले पर काले रंग से रंगी एक झोपड़ी और उसके आगे खड़ा है एक बदसूरत बुत। यही है उसकी झांकी, तेनालीराम की झांकी’, मंत्री ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा।
राजा उस ऊंचे टीले पर गए और तेनालीराम से पूछा, ‘तेनालीराम, यह तुमने क्या बनाया है? क्या यही है तुम्हारी झांकी?’
‘जी महाराज, यही मेरी झांकी है और मैंने यह क्या बनाया है इसका उत्तर मैं इसी से पूछकर बताता हूं, कौन है यह?’ कहते हुए तेनालीराम ने बुत से पूछा, ‘बोलता क्यों नहीं? महाराज के सवाल का उत्तर दें।’
‘मैं उस पापी रावण की छाया हूं जिसके मरने की खुशी में तुम दशहरे का त्योहार मना रहे हो, मगर मैं मरा नहीं। एक बार मरा, फिर पैदा हो गया। आज जो आप अपने आसपास भुखमरी, गरीबी, अत्याचार, उत्पीड़न आदि देख रहे हैं न…? ये सब मेरा ही किया-धरा है। अब मुझे मारने वाला है ही कौन?’ कहकर बुत ने एक जोरदार कहकहा लगाया।
राजा कृष्णदेव राय को उसकी बात सुनकर क्रोध आ गया। वे गुस्से में भरकर बोले, ‘मैं अभी अपनी तलवार से इस बुत के टुकड़े-टुकड़े कर देता हूं।’
‘बुत के टुकड़े कर देने से क्या मैं मर जाऊंगा? क्या बुत के नष्ट हो जाने से प्रजा के दुख दूर हो जाएंगे?’ इतना कहकर बुत के अंदर से एक आदमी बाहर आया और बोला, ‘महाराज, क्षमा करें। यह सच्चाई नहीं, झांकी का नाटक था।’
‘नहीं, यह नाटक नहीं था, सत्य था। यही सच्ची झांकी है। मुझे मेरे कर्तव्य की याद दिलाने वाली यह झांकी सबसे अच्छी है। प्रथम पुरस्कार तेनालीराम को दिया जाता है’, राजा कृष्णदेव राय ने कहा। राजा की इस बात पर सभी दरबारी आश्चर्य से एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे ।
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