रोमेश कुमार मट्टू, Senior Journalist & Chairman,Kashmiri Hindu Cultural Welfare Trust, Bangalore
जब कोई बचाने वाला नहीं हो तो वहां से भागना ही विकल्प था
आंखों के सामने अंधेरा था...जान और इज्जत बचाने के लिए निकलने के सिवा कोई चारा नहीं था
फिर किसी के साथ देश के किसी हिस्से में इस तरह की बर्बरता न हो...
कश्मीर के उस मनहूस दिन की कहानी, कश्मीरी पंडितों की जुबानी
जब वहां से निकले तो मैं क्या बताऊं? वहां से सब छोड़कर आए हम, वहां उस समय बस आंखों के सामने अंधेरा था,जीवन में भी अंधेरा था, उम्मीदों और आशाओं पर भी अंधेरा छाया था... अपनी जान, अपनी इज्जत को बचाने के लिए हम वहां से निकले और निकाले गए....
बहन और मां को लेकर निकलने के सिवा हमारे पास क्या था..जब कोई बचाने वाला नहीं हो,जब सरकार प्रशासन आपके साथ नहीं है,आपके अपने पड़ोसी ही आपको डराने और भगाने पर आमादा हो तब आप क्या करेंगे सिवा अपनी जान बचाकर भागने के....
किसी ने पूछा नहीं, यह बात बाहर आने नहीं दी गई, हमें अपने भरोसे छोड़ दिया, न सरकार ने कुछ किया..न दूसरे संगठनों ने...हम कई कई दिन तक कैंपों में रहें..बस सारे संघर्षों के बीच एक ही चीज रही कि हमने अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दिया, थोड़े में ही गुजारा कर के अपना मुकाम फिर से पाया है।
हमें लगा था कुछ दिन बाद हम लौट आएंगे पर ऐसा नहीं हुआ, वह दिन कभी नहीं आया और हमने अपना सबकुछ खो दिया....हमारे आदमियों को लूटा, जलाया, हर चीज हमारे सामने खत्म हो गई और किसी ने उस समय ना हाथ थामा, न रोका...पड़ोसी ने ही हमारी संपत्ति पर कब्जा कर लिया....दरवाजे और खिड़की खोलकर अंदर घुसे....
मैं वहां बाद में एक टूरिस्ट की तरह गया था...हिम्मत नहीं थी वहां जाने की पर गया और देखकर आया कि पड़ोसी ही कब्जा कर के बैठा है।
मैं एक बात अब तक नहीं भूल सकता कि उन्होंने मेरे 2 भाइयों को पनाह दी, शैतानों से बचाकर दो दिन घर में छुपाकर रखा...फिर उन्हें पिछले दरवाजे से निकाल दिया...लेकिन वही पड़ोसी ने फिर हमारे घर पर कब्जा कर लिया....दोनों अनुभव एक ही परिवार से मिल गए पर फिर भी उन्होंने जान बचाई ये बात हम कभी नहीं भूल सकते, ठीक है घरों पर कब्जा कर लिया....पर पनाह तो दी थी, दो दिन ही सही, जान तो बचाई न....
यह फिल्म ए टू जेड कश्मीरी पंडित पर ही बनी है और ए टू जेड सच है। वे लोग इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते थे....हम कम थे वे ज्यादा थे..हमारा नरसंहार किसी को नहीं बताया गया....फिल्म में अपनी समस्त सीमाओं के भीतर जितना पिरोया जा सकता था वह सब कोशिश की है...हम भी वहां जाना चाहते थे पर सरकार ने कुछ नहीं किया,प्रतीकात्मक जितनी बातें बताई गई हैं उससे ज्यादा प्रत्यक्ष हमने जिया और देखा है....
हम कश्मीरी पंडितों को कहा गया कि आप मुखबिर हो यहां से निकल जाओ....नरसंहार पर भारत सरकार चुप कर के बैठा रहा... फिल्म KashmirFiles ने नरसंहार को नरसंहार के रूप में ही दिखाया....हम सोचते थे कभी तो कुछ होगा हमें ले जाया जाएगा...हजारों लोगों का कत्लेआम करने वाले खुले आम घूम रहे हैं क्योंकि कोई सबूत नहीं है, कोई कैसे सिद्ध करेगा...जान जहां जा रही हो वहां सबूत कौन जुटाएगा....और अफसोस इस बात का है कि यह स्वाधीन भारत की बात है....
वर्तमान सरकार से एक ही बात कहना है हमें हमारी पहचान, संस्कृति और विरासत के साथ हमारे घरों को लौटाया जाए... और कुछ नहीं चाहिए बस जो हुआ है उसे वैसा ही इतिहास में दर्ज किया जाए....
जितने भी हम शरणार्थी हैं उन्हें फिर से बसाए जाने की जरूरत है....यह सरकार का पहला फर्ज है....मैं जिस संगठन का चैयर पर्सन हूं वह सब अपने पैसे से कर रहा हूं, हमारे संगठनों को कोई फंडिग नहीं है....मेरी सरकार से गुजारिश है कि फिर किसी कम्यूनिटी के साथ देश के किसी हिस्से में इस तरह की बर्बरता न हो....जो भी दिखाया है फिल्म में वह सच है और सच के सिवा कुछ भी नहीं है....