अफ़सोस तो ये है कि मेरे मद्‌‌दे मुक़ाबिल

आज का शेर

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अफ़सोस तो ये है कि मेरे मद्‌‌दे मुक़ाबिल
क़ातिल है मगर वार में काजल की कमी ह ै' ।
अहमद कमाल परवाज़ ी

एक अर्थ तो यही है कि मेरे सामने मेरा वही महबूब है जिसका हुस्न क़ातिल है और उसके चेहरे पर काजल की कमी है। दूसरा अर्थ व्यापक है और शेर हर तरह की कमी पर कहीं भी इस्तेमाल हो सकता है। मुक़ाबला और क़ातिल शब्द में नुक्ता लगता है और बोलने में इसका अभ्यास किया जाना चाहिए।

मद्‌दे मुकाबिल - सामने

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