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पहले 'छक्का' बोलकर करते थे अपमान, आज कहते हैं ‘सैल्यूट मैडम’, जानिए ट्रांसजेंडर दिव्या ने बिहार पुलिस में कैसे बनाई अपनी पहचान

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Feature Desk

inspirational story of divya ojha bihar police: भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को अक्सर समाज में भेदभाव, उपेक्षा और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। उनकी लैंगिक पहचान के कारण उन्हें कई तरह के तानों और मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। लेकिन, इन्हीं चुनौतियों के बीच कुछ ऐसे नाम भी उभर कर सामने आते हैं, जो न केवल अपने समुदाय के लिए प्रेरणा बनते हैं, बल्कि पूरे समाज को यह सिखाते हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। ऐसी ही एक मिसाल हैं गोपालगंज की रहने वाली दिव्या ओझा, जिन्होंने 'छक्का' जैसे अपमानजनक शब्दों से 'सैल्यूट मैडम' तक का सफर तय कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

तानों से भरा बचपन और संघर्ष का दौर
गोपालगंज की रहने वाली दिव्या ओझा को अपनी लैंगिक पहचान के कारण बचपन से ही समाज से कई तरह के तानों और तिरस्कारों का सामना करना पड़ा। सड़कों पर चलते हुए लोग उन्हें 'छक्का' कहकर बुलाते थे, उनका मज़ाक उड़ाते थे। यह सब मानसिक रूप से बहुत पीड़ादायक था, लेकिन दिव्या ने इन सब से हार नहीं मानी। उनके मन में हमेशा यह बात थी कि उन्हें कुछ ऐसा करना है, जिससे वे अपने समुदाय के लिए एक मिसाल बन सकें और समाज की सोच को बदल सकें।

दिव्या ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई को अपना हथियार बनाया। उन्होंने पटना आकर बिहार पुलिस में भर्ती होने के लिए कड़ी मेहनत की। यह आसान नहीं था, क्योंकि उन्हें न केवल सामाजिक चुनौतियों से लड़ना था, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से भी खुद को मजबूत बनाना था। ढाई साल तक उन्होंने एक निजी कोचिंग संस्थान में रहकर तैयारी की, अपने गुरुजनों के मार्गदर्शन का पूरी तरह से पालन किया।

बिहार पुलिस में चयन: जज्बे, लगन और कड़ी मेहनत का परिणाम
दिव्या ओझा के जज्बे, लगन और कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि उन्होंने बिहार सिपाही भर्ती परीक्षा 2024 में सफलता हासिल की। इस सफलता ने न केवल दिव्या के जीवन को बदल दिया, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय का मान बढ़ाया। जब रिजल्ट आया, तो दिव्या सबसे पहले अपने गुरुजी से मिलने पहुँचीं और भावुक होकर कहा, "आज मेरी मेहनत रंग लाई है। मैंने अपने जीवन और पहचान के लिए बहुत संघर्ष किया है। आज मुझे लग रहा है कि मैं भी इस समाज का हिस्सा हूँ।"

दिव्या की यह सफलता सिर्फ़ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि धीरे-धीरे समाज अब हाशिये पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में स्वीकार करना शुरू कर चुका है। इस बार की भर्ती में कुल 8 ट्रांसजेंडर अभ्यर्थियों ने सफलता पाई है, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है।

एक प्रेरणादायक मिसाल और समाज को संदेश
दिव्या ओझा की कहानी सिर्फ एक सफलता की गाथा नहीं, बल्कि समाज की सोच को आईना दिखाने वाली मिसाल है। यह दिखाता है कि अगर जज्बा और मेहनत हो, तो कोई भी दीवार बहुत ऊंची नहीं होती। दिव्या ने अपने समुदाय के लोगों से भी अपील की है कि वे घर से निकलें, मेहनत करें और साबित करें कि ट्रांसजेंडर लोग भी किसी से कम नहीं हैं।

आज, जब दिव्या ओझा बिहार पुलिस की वर्दी पहनकर सड़क पर निकलती हैं, तो वही लोग जो कभी उन्हें 'छक्का' कहकर अपमानित करते थे, अब 'सैल्यूट मैडम' कहकर उनका सम्मान करते हैं। यह बदलाव सिर्फ़ दिव्या के लिए नहीं, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक नई उम्मीद और सम्मान की किरण है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची लगन और आत्म-विश्वास से हर चुनौती को पार किया जा सकता है और समाज में अपनी जगह बनाई जा सकती है।

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