supreme court guidelines on stray dogs: नीदरलैंड, जो कभी आवारा कुत्तों की एक बड़ी समस्या से जूझ रहा था, आज दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां एक भी आवारा कुत्ता सड़कों पर नहीं घूमता। यह कोई चमत्कारी घटना नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित, मानवीय और दृढ़-इच्छाशक्ति वाली सरकारी रणनीति का परिणाम था। उन्होंने कुत्तों को मारने या क्रूर तरीकों से हटाने की बजाय, एक कल्याण-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जिसे अक्सर "CAR" (Collect, Neuter, Vaccinate, Return) मॉडल कहा जाता है।
इस नीति के तहत, सरकार ने कई प्रभावी कदम उठाए:
• भारी टैक्स: पालतू जानवरों की दुकानों से खरीदे गए कुत्तों पर भारी कर लगाया गया। इस कदम का उद्देश्य लोगों को बिना सोचे-समझे कुत्ते खरीदने से रोकना और उन्हें शेल्टर होम से गोद लेने के लिए प्रोत्साहित करना था।
• गोद लेने को प्रोत्साहन: सरकार और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) ने मिलकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया, जिसमें लोगों को शेल्टर होम से आवारा कुत्तों को गोद लेने के लिए प्रेरित किया गया। इस अभियान ने हजारों कुत्तों को नया घर दिलाया।
• अनिवार्य रजिस्ट्रेशन: हर पालतू कुत्ते के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया, जिससे मालिक की जिम्मेदारी तय हुई। इसके साथ ही, जानवरों के प्रति क्रूरता या उन्हें छोड़ने पर कड़े कानून बनाए गए, जिसमें भारी जुर्माना और तीन साल तक की जेल का प्रावधान था।
• मुफ्त नसबंदी और टीकाकरण: सरकार ने एक बड़े पैमाने पर मुफ्त नसबंदी (sterilization) अभियान चलाया ताकि आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित किया जा सके। इसके साथ ही स्वस्थ कुत्तों को न मारने की नीति भी अपनाई गई, जिससे समाज में जानवरों के प्रति सहानुभूति बढ़ी।
यह व्यापक दृष्टिकोण इतना सफल रहा कि आज नीदरलैंड में 90% से अधिक डच परिवार पालतू जानवर खरीदने की बजाय उन्हें गोद लेते हैं।
क्या भारत में कारगर होगा यह तरीका?
भारत में आवारा कुत्तों की समस्या एक जटिल मुद्दा है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या को अत्यधिक गंभीर बताते शहर की सरकार और नगर निकायों को निर्देश दिया कि वे जल्द से जल्द सभी इलाकों से आवारा कुत्तों को उठाने और उन्हें आश्रय स्थलों में रखने का आदेश जारी किया था। इसके बाद देश भर में पेट लवर्स ने इसे अमानवीय और इम्प्रेक्टिवल बताते हुए इसका विरोध किया।
हालांकि, भारत सरकार भी इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठा रही है। "पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control - ABC) नियम, 2023" के तहत कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। मुंबई और बेंगलुरु जैसे कुछ शहरों में एबीसी (ABC) कार्यक्रम ने सकारात्मक परिणाम भी दिखाए हैं।
हालांकि, नीदरलैंड के मॉडल को भारत में पूरी तरह से लागू करने में कुछ चुनौतियाँ हैं:
1. पैमाने की चुनौती: भारत की विशाल आबादी और लाखों कुत्तों के कारण एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाना एक बड़ा logistical challenge है। इसके लिए बड़े पैमाने पर धन, प्रशिक्षित कर्मचारियों और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी।
2. कानूनों का कार्यान्वयन: भारत में पशु कल्याण कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन अक्सर कमजोर होता है। सख्त नियमों को सख्ती से लागू करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
3. जागरूकता और मानसिकता: भारत में कुत्तों को सड़कों पर छोड़ने या उन्हें खरीदने की प्रवृत्ति अभी भी बहुत आम है। लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना और उन्हें गोद लेने के लिए प्रेरित करना एक लंबा सफर है।
नीदरलैंड का मॉडल साबित करता है कि दयालुता और प्रभावी नीतियों से आवारा कुत्तों की समस्या को मानवीय तरीके से हल किया जा सकता है।
यह एक ऐसा उदाहरण है जिससे भारत बहुत कुछ सीख सकता है। भले ही भारत को अपनी आबादी और संस्कृति के अनुसार कुछ बदलाव करने पड़ें, लेकिन नीदरलैंड की तरह गोद लेने को बढ़ावा देना, मुफ्त नसबंदी अभियान चलाना, और कानूनों को सख्ती से लागू करना भारत में भी एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है।