संयुक्त राष्ट्र अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार अमीर देशों की तुलना में निम्न आय वाले देशों में युवा श्रमिकों को नियमित रोज़गार मिलना अधिक मुश्किल होता है।
दुनिया भर में बेरोज़गार युवजन की संख्या 15 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। लेकिन कोविड महामारी के बाद हुई आर्थिक पुनर्बहाली का लाभ एशिया-प्रशान्त व अरब देशों, और ख़ासतौर पर महिलाओं को हासिल नहीं हो पाया है।
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने दुनिया भर के रोज़गार बाज़ारों के रुझानों पर नए आँकड़े प्रकाशित करते हुए कहा है, "दुनिया भर में लाखों युवजन की बेहतर हालात व पारिश्रमिक वाला कामकाज पाने की आकांक्षाओं के रास्ते में बाधाएं मौजूद हैं।
ILO रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि 2023 में वैश्विक स्तर पर युवा बेरोज़गारी में 13 प्रतिशत तक की गिरावट आई है– जो 2019 में 13.8% की महामारी-पूर्व दर से कम है, लेकिन यह पुनर्बहाली "असमान" रही है।
ILO में रोज़गार विश्लेषण तथा सार्वजनिक नीतियों की प्रमुख सारा ऐल्डर का कहना है, "पूर्वी एशिया में 4.3% ऊपर अरब देशों में 1% ऊपर और दक्षिण-पूर्व एशिया व प्रशान्त में 1% ऊपर के हिसाब से युवा बेरोज़गारी की दर में वृद्धि जारी है"
अवसरों की कमी : इसके साथ ही इस शोध से यह चिन्ताजनक बात भी सामने आई है कि पिछले साल हर पाँच में से एक युवा को रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण हासिल नहीं हुआ है – एक ऐसी स्थिति जिसे ILO ने “NEETs” (Not in Employment, Education or Training) की संज्ञा दी है।
सारा ऐल्डर ने कहा, "अगर आप एक युवा महिला हैं तो शिक्षा जारी रखना या रोज़गार हासिल करने की चुनौती दोगुनी हो जाती है– क्योंकि हर तीन में दो NEETs महिलाएं हैं”
इसके अलावा युवा श्रम बाज़ार में अन्य प्रमुख विकास यह रहा है कि ILO के अनुसार अब एक बेहतर हालात व पारिश्रमिक वाला रोज़गार तलाश करना, "पहले से कहीं अधिक कठिन" हो गया है। ILO का अनुमान है कि पिछले एक साल में लगभग साढ़े 6 करोड़ युवाओं के पास रोज़गार नहीं था।
जन्मजात पूर्वाग्रह : सारा ऐल्डर ने कहा, "अधिकांश युवा श्रमिकों को अब भी सामाजिक सुरक्षा का अभाव है (और) उनके रोज़गार अस्थाई हैं, जिससे उनके लिए स्वतंत्र वयस्कों के रूप में प्रगति करना कठिन हो जाता है"
उन्होंने कहा कि धनी देशों के चार में से तीन युवाओं के पास नियमित व सुरक्षित रोज़गार की तुलना में, कम आय वाले देशों में चार में से केवल एक युवा श्रमिक के पास ही नियमित और सुरक्षित कामकाज होने की सम्भावना होती है।
संयुक्त राष्ट्र श्रम एजेंसी के शोध में पाया गया कि काम ढूंढने का दबाव युवजन पर भारी पड़ता है। इनमें से तीन में से दो युवजन का कहना था कि उन्हें अपना कामकाज खोने का डर रहता है।
आईएलओ ने ज़ोर देते हुए कहा कि यह स्थिति इस सबके बावजूद है कि रोज़गार खोज रहे वर्तमान Gen Z पीढ़ी के युवजन "अब तक के सबसे शिक्षित युवा समूह हैं"
सारा ऐल्डर ने कहा, “सभ्य कामकाज युवजन के लिए बेहतर भविष्य का टिकट और सामाजिक न्याय, समावेशन एवं शान्ति का पासपोर्ट है। सुनहरे भविष्य के लिए अवसर उत्पन्न करने का अगर कोई सही समय है, तो वो अभी है”