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ICJ : इसराइल, क़ाबिज़ फिलिस्तीनी क्षेत्र में सहायता पहुंचने देने के लिए बाध्य

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हमें फॉलो करें International Court of Justice made this decision regarding the delivery of aid to the Palestinian territories

UN

, गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025 (21:11 IST)
अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने कहा है कि इसराइल को फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर क़ाबिज़ शक्ति के रूप में अपनी ज़िम्मेदारियों को यह सुनिश्चित करके निभाना होगा कि फिलिस्तीनी क्षेत्रों में सहायता सामग्री निर्बाध रूप से प्रवाहित हो और क़ाबिज़ फिलिस्तीनी क्षेत्र में सेवाएं दे रहीं यूएन व अन्य मानवीय एजेंसियों के अधिकारों का सम्मान किया जाए।
 
द हेग स्थित सर्वोच्च यूएन न्यायालय ने बुधवार को एक परामर्शकारी राय में कहा है कि इसराइल को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि क़ाबिज़ फिलिस्तीनी क्षेत्र [OPT] की आबादी के पास, दैनिक जीवन की आवश्यक सामग्रियां उपलब्ध हों, जिनमें भोजन, पानी, कपड़े, बिस्तर, आश्रय, ईंधन, चिकित्सा आपूर्ति और सेवाएं शामिल हैं।
इस विश्व न्यायालय ने यह परामर्शकारी राय, यूएन महासभा के अनुरोध पर सुनवाई में जारी की है। विश्व न्यायालय ने इसराइल से सभी सहायता कर्मियों, चिकित्सा कर्मियों और सुविधाओं का सम्मान व सुरक्षा करने का भी आहवान किया है।
 
न्यायाधीशों ने यह भी स्वीकार किया कि इसराइल का यह दायित्व है कि वह संयुक्त राष्ट्र के साथ सदभावपूर्वक सहयोग करे, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार की जाने वाली किसी भी कार्रवाई में हरसम्भव सहायता प्रदान करे, जिसमें फिलिस्तीनी शरणार्थी राहत एजेंसी, UNRWA भी शामिल है। इस परामर्शकारी राय के समर्थन में दस न्यायाधीशों ने मत दिया, जबकि एक न्यायाधीश का मत विरोध में पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय की राय को बेहद महत्वपूर्ण बताया है और कहा है कि यह ऐसे समय में आई है जब संयुक्त राष्ट्र, ग़ाज़ा में युद्धविराम लागू होने के बाद वहां सहायता बढ़ाने के लिए हरसम्भव प्रयास कर रहा है।
 
यूएन महासभा ने न्यायालय को यह अनुरोध दिसम्बर 2024 में भेजा था जिस पर यह राय, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अन्तरराष्ट्रीय संगठनों व फिलिस्तीन में मानवीय कार्यों में सक्रिय देशों के साथ, इसराइल के दायित्वों पर ज़ोर देती है।
 
इस मामले में अन्तरराष्ट्रीय भागीदारी के स्तर के संकेत के रूप में 28 अप्रैल से 2 मई 2025 तक हुई सुनवाई के दौरान, 45 देशों और संगठनों ने लिखित बयान दायर किए और 39 ने मौखिक दलीलें पेश कीं। ग़ाज़ा में दो साल की भीषण इसराइली बमबारी में व्यापक नुक़सान हुआ है और लाखों लोग भुखमरी व अकाल की चपेट में धकेल दिए गए।
 
इस न्यायालय की क्या अहमियत है?
हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय, संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। यह न्यायालय, देशों के बीच क़ानूनी विवादों का निपटारा करता है और संयुक्त राष्ट्र निकायों के अनुरोध पर सलाहकारी राय देता है।
 
ये राय क़ानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन इनमें महत्वपूर्ण नैतिक और क़ानूनी अधिकार होते हैं और अक्सर अन्तरराष्ट्रीय नीति और व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं।
 
अन्तरराष्ट्रीय क़ानून से बाध्य
आईसीजे ने माना कि इसराइल अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून और मानवाधिकार क़ानून के तहत, क़ाबिज़ फिलिस्तीनी क्षेत्र में, आम लोगों का सम्मान और सुरक्षा करने के लिए बाध्य है। साथ ही यह सुनिश्चित करना भी उसकी ज़िम्मेदारी है मानवीय सहायता कर्मियों और चिकित्सा सुविधाओं की सुरक्षा की जाए और किसी भी व्यक्ति को जबरन बेदख़ल या भोजन से वंचित नहीं किया जाए।
 
ग्यारह में से दस न्यायाधीश इस बात पर सहमत हुए कि इसराइल को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र व उसके अधिकारियों के विशेषाधिकारों का सम्मान करना ज़रूरी है। इनमें संयुक्त राष्ट्र के सभी परिसरों की अखंडता क़ायम रखना शामिल है और इन परिसरों में, UNRWA द्वारा प्रबन्धित परिसर भी शामिल हैं। यूगांडा की न्यायाधीश जूलिया सेबुटिंडे ने कई खंडों में, अपना असहमति वाला मत दर्ज कराया।
आईसीजे ने यह भी पुष्टि की कि इसराइल को, क़ाबिज़ फिलिस्तीनी क्षेत्र में बन्दियों तक अन्तरराष्ट्रीय रैडक्रॉस समिति (ICRC) की पहुंच की अनुमति देने होगी और आम लोगों को भूखा रखने को युद्ध के एक तरीक़े के रूप में इस्तेमाल पर लगे प्रतिबन्ध का सम्मान करना होगा।

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