जब संकट दस्‍तक देता है तो सबसे पहले मदद के लिए दाइयां खड़ीं होती हैं

UN
सोमवार, 6 मई 2024 (15:31 IST)
UNFPA का कहना है कि इस संख्या में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ोत्तरी होने का जोखिम है। एजेंसी ने इन जोखिमों को कम करने में दाइयों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है।

UNFPA की मुखिया डॉक्टर नतालिया कैनेम ने इस दिवस के अवसर पर एक सन्देश में कहा है, “जब संकट दस्तक देते हैं तो दाइयां ही सबसे पहले घटनास्थल पर मौजूद होती हैं, विशेष रूप से दूर-दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले समुदायों में"

"वो जानती हैं कि गर्भवती महिलाओं की परिस्थितियां कुछ भी हों, शिशु का जन्म तो होगा ही– चाहे वो महिला अपने घर पर हो या वो किसी युद्धक स्थिति या फिर आपदा से बचने के लिए सुरक्षा की ख़ातिर भाग रही हो” दाइयां, शिशुओं को जन्म दिलाने के महत्वपूर्ण कार्य के साथ, अन्य लगभग 90 प्रतिशत यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं भी मुहैया कराती हैं।

जब युद्ध चोट करता है: महत्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल करने वालों के रूप में दाइयों की महत्ता, उस समय और बढ़ जाती है जब किसी स्थान पर टकराव या युद्ध की स्थिति बढ़ने की आशंका होती है। उनकी भूमिका किसी गर्भवती महिला के अपने बच्चे को जन्म देने के दौरान उसे सहायता मुहैया कराने से कहीं आगे बढ़ जाती है।

उनकी भूमिका भारी तनाव और दबाव का सामना कर रही महिलाओं और बच्चों को, मनोवैज्ञानिक समर्थन देने तक पहुंच जाती है। संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस दिवस के अवसर पर एक विशेष वीडियो जारी किया है जिसमें ग़ाज़ा के अल-इमारती अस्पताल में एक दाई और मुख्य नर्स समर नाज़मी मुवाफ़ी को दिखाया गया है।

लगभग 500 महिला मरीज़ हर दिन अस्पताल के आपात कक्ष में आते हैं। समर नाज़मी मुवाफ़ी, उन मरीज़ों की देखभाल की ज़िम्मेदारी के भारी बोझ के बावजूद, उन पर ही ध्यान केन्द्रित करके, अपनी हिम्मत और हौसला बरक़रार रखती हैं।

नर्स समर नाज़मी मुवाफ़ी कहती हैं, “मैंने अपनी मुस्कुराहट बरक़रार रखना सीखा है। मैं हमेशा अपने मरीज़ों को बेहतर महसूस कराने के लिए अपनी मुस्कुराहट बरक़रार रखती हूं।

भारी क़िल्लत: दुनिया भर में लगभग 10 लाख दाइयों की भारी क़िल्लत है। चुनौतीपूर्ण कामकाजी परिस्थितियों, लैंगिक भेदभाव के कारण कम पारिश्रमिक और उत्पीड़न की ख़बरों ने, बहुत से लोगों को, दाइ के पेशे में दाख़िल होने से हतोत्साहित किया है।

UNFPA के वर्ष 2023 के आंकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 2 लाख 87 महिलाओं की मौत, अपने शिशुओं को जन्म देने के दौरान हो जाती है। लगभग 24 लाख बच्चे जन्म के समय अपनी ज़िन्दगी खो देते हैं और उनके अलावा क़रीब 22 लाख बच्चे मृत जन्म लेते हैं।

यूएन यौन व प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी का कहना है कि दुनिया भर में दाइयों की समुचित सेवाएं मिलने से, जच्चा-बच्चा की ऐसी मौतों को रोकने में मदद मिलती है, जिन्हें सही चिकित्सा देखभाल मिलने से रोका जा सकता है।

दाइयों की संख्या और ज़रूरत के अन्तर को पाटने से, जच्चा-बच्चा की दो तिहाई मौतों को रोका जा सकता है, जिससे वर्ष 2035 तक लगभग 43 लाख ज़िन्दगियां बचाई जा सकेंगी। UNFPA ने पहले अनेक देशों में जागरूकता बढ़ाई है और अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, लगभघ साढ़े तीन लाख दाइयों को प्रशिक्षित किया है।

सम्बंधित जानकारी

Elon Musk के इस Robotaxi और Robovan को देखकर हो जाएंगे हैरान, कैलिफोर्निया में हुई लॉन्‍च

ढाई घंटे हवा में 'थम' गईं 140 लोगों की सांसें, फिर जान में जान आई

क्या महायुति में सब ठीक है? महाराष्ट्र डिप्टी सीएम अजित पवार ने बताई सच्चाई

जेशोरेश्वरी काली मंदिर से चोरी हुआ मुकुट, पीएम मोदी ने किया था गिफ्‍ट

आतिशी से जो बंगला खाली कराया था, वही दिल्ली की CM को आवंटित

मुंबई में बाबा सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या, NCP अजित गुट के थे नेता

दशहरा रैली के दौरान शिवसेना के दोनों गुटों ने किया शक्ति प्रदर्शन

IND vs BAN : भारत ने बांग्लादेश का किया क्लीन स्वीप, 133 रन से जीता तीसरा टी-20

Gujarat : मेहसाणा में निर्माण स्थल पर दीवार गिरने से 2 महिलाओं समेत 9 मजदूरों की मौत

आतंकियों की पार्टी है BJP, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने साधा निशाना, जानें क्यों कही यह बात

अगला लेख