परिवारवाद के नाम पर अब कैसे घेरेगी बीजेपी?

अवनीश कुमार
सोमवार, 23 जनवरी 2017 (16:57 IST)
लखनऊ। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव की दूसरी सूची भारतीय जनता पार्टी ने जारी कर दी है। अगर दोनों सूचियों पर नजर डालें तो भारतीय जनता पार्टी भी अन्य पार्टियों की तरह परिवारवाद पर ही भरोसा करती दिख रही है, क्योंकि कई सीटें उत्तरप्रदेश की ऐसी हैं, जहां पर अन्य पार्टी के कद्दावर नेता पार्टी को जीत हासिल करा सकते थे।
लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं के बेटी, बेटे व अन्य को आगे बढ़ाकर यह तो स्पष्ट कर दिया है कि अब भारतीय जनता पार्टी भी परिवारवाद की तरफ बढ़ रही है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी दूसरी अन्य पार्टियों पर खासतौर समाजवादी पार्टी व कांग्रेस को परिवारवाद का ठीकरा फोड़ते हुए आए दिन सवालों के घेरे में जनता के बीच लाकर खड़ा करती थी, अब क्या खुद भारतीय जनता पार्टी ऐसा कर पाएगी? क्योंकि कहीं न कहीं पहली या दूसरी लिस्ट पर अगर नजर डालें तो यहां कार्यकर्ताओं को दरकिनार करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के घर वालों को आगे बढ़ाया गया है। 
 
अब ऐसे में लाजमी है कि कांग्रेस व समाजवादी पार्टी अगर भारतीय जनता पार्टी के ऊपर परिवारवाद का आरोप लगाती है तो भारतीय जनता पार्टी कैसे पार्टियों के सवालों का जवाब देगी? और क्या विधानसभा चुनाव में अब भारतीय जनता पार्टी परिवारवाद को लेकर समाजवादी पार्टी व कांग्रेस को घेर पाएगी? इन्हीं सब सवालों का जवाब हमने कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से जानने का प्रयास किया। आइए आपको बताते हैं किसने क्या कहा? 
 
क्या बोले पत्रकार-
 
वरिष्ठ पत्रकार अनिल सागर ने बताया कि राजनीति में अवसरवादिता सर्वोच्च हो गई है। सत्ता हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं नेता। और रही परिवारवाद पर घेरने का प्रश्न है तो वह गांधी परिवार व समाजवादी पार्टी को राजनीतिक सुविधानुसार सदैव भारतीय जनता पार्टी घेरती रही है लेकिन आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी को भी पार्टियां परिवारवाद के नाम पर घेरेगी और इसका कोई जवाब पार्टी के पास नहीं होगा।
 
वरिष्ठ पत्रकार मोहित ने बताया कि अब भारतीय जनता पार्टी के लिए समाजवादी पार्टी को परिवारवाद के नाम पर घेरना मुश्किल होगा, क्योंकि उनकी पार्टी ने भी कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं के बच्चों को टिकट दे डाला है।
 
अब ऐसे में बिलकुल लाजमी है कि भारतीय जनता पार्टी भी अब परिवारवाद मामले में न तो किसी पार्टी को खींचेगी और न ही किसी पर कोई टिप्पणी करेगी, क्योंकि अगर वह ऐसा करती है तो अन्य पार्टियां भी उनसे जवाब मांगेंगी और जिसका कोई भी जवाब पार्टी के पास नहीं होगा। और रहा पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी का तो यह तो भारतीय जनता पार्टी की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह किसको टिकट देती है और किसको नहीं।

इसमें अगर यह कहा जाए कि पार्टी ने कार्यकर्ताओं की अनदेखी की है तो मेरे हिसाब से यह कहना गलत होगा, क्योंकि टिकट का वितरण अन्य कई प्रकार के आधारों को देखते हुए किया जाता है। अब ऐसे में अगर किसी कार्यकर्ता को टिकट नहीं मिल पाता है तो स्वाभाविक है कि वह कार्यकर्ता आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगा देता है।
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