गठबंधन ने कांग्रेस का चीरहरण ही कर दिया?

Webdunia
शुक्रवार, 27 जनवरी 2017 (17:29 IST)
नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के पास गांधी परिवार के गढ़ के नाम पर अमेठी और रायबरेली की संसदीय सीटें ही थीं लेकिन कांग्रेस के सपा के साथ हुए गठबंधन ने इन सीटों पर से भी कांग्रेस का वर्चस्व समाप्त कर दिया। रायबरेली और अमेठी जिलों की जिन विधानसभा सीटों को कांग्रेस की परंपरागत ताकत समझा जाता था, उनमें से भी कई बार समाजवादियों ने कब्जा कर लिया।

 
कांग्रेस जिन सीटों पर बेहतर कर पाने की स्थिति में थी और जहां से उसके लिए इस बार जातीय और सामाजिक गणित अनुकूल होता दिख रहा था, उन्हीं सीटों पर कांग्रेस को समाजवादी पार्टी ने पूरी तरह से 'फ्लॉप शो' करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस गठबंधन से सपा को वे सीटें भी मिल सकती हैं, जो कि उसके लिए जोखिम हो सकती थीं और कांग्रेस के हाथ से वे सीटें भी जा सकती हैं जिन्हें वह कोशिश कर जीत सकती थी। 
 
ऐसा नहीं है कि इन दोनों संसदीय सीटों पर कांग्रेस की स्थिति पिछले विधानसभा चुनाव जितनी कमजोर थी लेकिन समाजवादी पार्टी ने यहां की सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा करके कांग्रेस का सारा खेल बिगाड़ दिया है। कांग्रेस जिन सीटों पर इस बार जातीय और सामाजिक गणित के बल पर जीत सकती थी, उन्हीं सीटों पर कांग्रेस का समाजवादी पार्टी ने चीरहरण कर दिया है। कांग्रेस के हिस्से में वे सीटें आई हैं, जहां पार्टी के पास मजबूत और जिताऊ चेहरे भी नहीं हैं।
 
पिछले विधानसभा चुनाव में रायबरेली से कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। अमेठी में तिलोई और जगदीशपुर विधानसभा सीट इन 2 सीटों पर पार्टी जीती थी, पर इस बार तिलोई से जीते हुए प्रत्याशी डॉक्टर मुस्लिम बसपा में शामिल हो गए और इस बार उनका बेटा सऊद मैदान में है।
 
कांग्रेस के पास रायबरेली की सदर सीट पर जीत की गारंटी है। यहां से अखिलेश प्रताप सिंह अपने बाहुबल से लगातार जीतते आए हैं। इस बार उनकी बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। इसे ही कांग्रेस की पक्की सीट मानी जा सकता है। कांग्रेस उंचाहार, सलोन, गौरीगंज, सरेनी जैसी सीटों पर मजबूत दावेदारी पेश करने की स्थिति में थी लेकिन इन सीटों पर अब सपा के प्रत्याशी मैदान में हैं।
 
कांग्रेस के पास हरचंदपुर और बछरावां जैसी सीटें हैं, जहां से सपा के पास मजबूत प्रत्याशी थे लेकिन ये कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई हैं। इसके अलावा, सपा अपने जिन विधायकों को दोहराना चाहती है, उनका जीतना मुश्किल हो गया है। इस स्थिति में कांग्रेस और सपा के लिए यह गठबंधन अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार चुका है।
 
लाभ भाजपा या बसपा को
 
इन दोनों पार्टियों में आपसी तालमेल की कमी के चलते अब भाजपा और बसपा को लाभ मिलने की संभावना है। इस सीटों पर सपा से नाराज लोगों के लिए कांग्रेस एक बेहतर विकल्प होती लेकिन उस संभावना के कमजोर होने से वोटर बसपा और भाजपा की ओर उम्मीद से देख रहे हैं। अमेठी से कांग्रेस नेता संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह को भाजपा ने टिकट दिया है और माना जा रहा है कि गायत्री प्रजापति को वे अच्छी टक्कर दे सकती हैं। ऊंचाहार में स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे और सपा के वर्तमान विधायक से नाराज वोटर अब बसपा का रुख कर सकते हैं।
 
बसपा ने इस सीट पर पूर्व विधायक गजाधर सिंह के बेटे विवेक सिंह को टिकट दिया है। गजाधर सिंह सपा से कई बार चुनाव लड़ चुके हैं और इस वजह से इस सीट पर राजपूत और मुस्लिम वोट में उनकी पैठ है और इसका फायदा उनका बेटा उठा सकता है। इन सीटों को लेकर भ्रम और भी गहरा हो गया है, क्योंकि प्रियंका गांधी के कार्यालय से इन सभी सीटों पर कांग्रेस के संभावित प्रत्याशियों को भी तैयार रहने के लिए कहा गया है। ऐसे में मतदाता भ्रम में हैं कि इन सीटों पर गठबंधन का प्रत्याशी है कौन? और दोनों दलों के प्रत्याशी तैयारी भी कर रहे हैं। 
 
गठबंधन में जमीनी तालमेल की कमी 
 
दरअसल, रायबरेली और अमेठी तो केवल उदाहरण हैं, क्योंकि अगर गढ़ में ही स्थिति ऐसी है तो सोचिए कि बाकी सूबे में गठबंधन जमीन पर कितना कारगर होगा? अगर स्थिति ऐसी ही रही तो यह गठबंधन जमीन पर वोटों में तब्दील हो पाएगा, यह संदिग्ध मालूम देता है। गठबंधन की सबसे बड़ी दो चुनौतियां हैं। पहली तो यह कि गठबंधन का बहुमत के आधार पर सीटों में तालमेल नहीं है, दूसरी चुनौती है कि दोनों पार्टियों के वोट एक-दूसरे के लिए डलवा पाना संभव होता नहीं दिखता है। जमीनी स्तर पर तालमेल के अभाव में दोनों दलों के प्रत्याशी चुनाव हार सकते हैं। 
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