Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

एक्सप्लेनर: उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से 5 महीने पहले योगी कैबिनेट के विस्तार के मायने ?

हमें फॉलो करें एक्सप्लेनर: उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से 5 महीने पहले योगी कैबिनेट के विस्तार के मायने ?
webdunia

विकास सिंह

, सोमवार, 27 सितम्बर 2021 (11:13 IST)
उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव से मात्र पांच महीने पहले योगी कैबिनेट का विस्तार किया गया है। चुनाव से ठीक पहले योगी कैबिनेट के विस्तार को लेकर कई सवाल भी उठ रहे है। मंत्रिमंडल विस्तार चुनाव पहले जातीय वोट बैंक को रिझाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। मंत्रिमंडल में एक ब्राह्मण चेहरे के साथ केवल बैकवर्ड क्लास से आने वाले लोगों को  तरजीह दी गई है।

योगी कैबिनेट के इस चुनावी विस्तार को लेकर विपक्ष सरकार के खिलाफ मुखर हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल विस्तार पर चुटकी लेते हुए कहा कि चुनाव को देखते हुए जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की गई है लेकिन इस विस्तार से भाजपा को चुनाव में कोई फायदा नहीं होगा।

वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा ने यूपी में जातिगत आधार पर वोटों को साधने के लिए जिनको भी मंत्री बनाया है, बेहतर होता कि वे लोग इसे स्वीकार नहीं करते क्योंकि जब तक वे अपने-अपने मंत्रालय को समझकर कुछ करना भी चाहेंगे तब तक यहाँ चुनाव आचार संहिता लागू हो जायेगी।
 
webdunia

उत्तरप्रदेश की सियासत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि योगी मंत्रिमंडल का विस्तार एक तरह से क्राइसिस मैनेजमेंट की कोशिश है और अलग-अलग जातियों के दबाव और उनको रिझाने के लिए यह मंत्रिमंडल विस्तार किया गया है। मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल मंत्रियों के नाम को देखे तो ओबीसी, दलित के चेहरे को शामिल कर इस वर्ग के वोट बैंक को साधने की कोशिश भाजपा ने की है।

रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि योगी कैबिनेट विस्तार में शामिल सात नए चेहरों में जिस तरह जितिन प्रसाद को छोड़कर सभी राज्यमंत्री बनाए गए है। वह यह दिखता है कि पांच महीने के लिए बने नए मंत्री का काम सिर्फ अपनी जाति के वोट बैंक को साधना होगा और यह अपनी कोशिश में रहेंगे। दरअसल भाजपा पॉलिसी इश्यू पर फंस गई है और अब धर्म और जातीय कार्ड के सहारे अपनी चुनावी नैय्या को पार करने की कोशिश में लगी है।

रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं जातिगत राजनीति एक सच्चाई है और यह भी सच है कि राजनीति में काम पर वोट नहीं मिलता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश भी बोलते है काम बोलता है लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा।

2022 के चुनाव में पूरी तरह जुटी भाजपा एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे के सहारे हिंदुत्व की पॉलिटिक्स कर रही है तो दूसरी ओर भाजपा इस सच्चाई से भी वाकिफ है कि चुनाव जीतने के लिए जातीय फैक्टर एक सच्चाई है और इसी सच्चाई का सामना करते हुए मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए ओबीसी वर्ग की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की गई है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

UP Election 2022 : मुस्लिम नेतृत्‍व तैयार करने का मुद्दा : असदुद्दीन ओवैसी के लिए कैसी है उत्तर प्रदेश की डगर?