उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए आज 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर 623 प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम मशीनों में बंद हो गया। इनमें 73 महिला प्रत्याशी भी हैं। सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे मतदाता अपने मत का दान करने के लिए मतदान केंद्रों पर पूरे उत्साह के साथ पहुंचे। उन्होंने कतारों में खड़े होकर धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इंतजार किया और फिर मुस्कुराते हुए अपने घरों के लिए वापस चले गए।
क्या था 2017 का नतीजा : इससे पूर्व 2017 में आगरा, मथुरा, बुलंदशहर, अलीगढ़, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, गाजियाबाद, बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर और मेरठ जिले की इन 58 सीटों से 53 सीटों पर भाजपा ने अपनी विजय पताका फहराई थी।
इस बार पश्चिमी से उत्तरप्रदेश जीत के प्रसाद का स्वाद किस राजनीतिक दल को चखने को मिलता है, यह 10 मार्च को मतगणना के बाद ही पता चल सकेगा।
14 फरवरी को 55 सीटों पर मतदान : अब पश्चिमी उत्तरप्रदेश के 9 जिलों की 55 विधानसभा सीटों के लिए 14 फरवरी 2022 को मतदान होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा के सामने पुराना प्रदर्शन दोहराने या अधिकाधिक सीटें जीतने की चुनौती है वहीं लोकदल को अपना आधार क्षेत्र फिर से हासिल करना है। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन जितनी अधिक सीटों पर जीत हासिल करेगा, उतनी ही उनकी राह आसान होगी। इसके अलावा बसपा को भी अपना परचम सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से फैलाना है लेकिन उनके सामने अपना आधार वोट सुरक्षित रख पाना भी बड़ी चुनौती है।
कांग्रेस अकेले मैदान में : कांग्रेस इस बार अकेले अपनी अलग राह पर चलते हुए चुनावी मैदान में है और कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा के लिए वह कई मायनों में बड़ा खतरा है। धर्म और जाति की राजनीति से हटकर कांग्रेस ने बुनियादी मुद्दों को पूरी सजगता से उठाया है जिससे हर वर्ग में उसकी पैठ बनी है। यह बात दीगर है कि उसको कितनी सीटें और कितने प्रतिशत वोट मिलता है लेकिन भविष्य की राजनीति की दिशा बदलने में उसका कदम महत्वपूर्ण हो सकता है। भाजपा यदि चुनावों में विफल होती है तो निश्चय ही उसमें कांग्रेस का योगदान भी अहम होगा।
शामली में सबसे ज्यादा वोटिंग : आज शाम 6 बजे तक उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग समाप्त हो चुकी है। मिली जानकारी के मुताबिक 6 बजे तक प्रथम चरण में औसतन 61.17 फीसदी मतदान हुआ है। जिसमें शामली जिले में सर्वाधिक तो गाजियाबाद में सबसे कम वोटिंग हुई। शामली में 69.42%, मुजफ्फरनगर 65.32%, मेरठ 65.39%, गाजियाबाद 54.77%, हापुड़ 60.53%, बागपत 61.35 गौतमबुद्ध 56.48%, बुलंदशहर 60.57%, अलीगढ़ 60.49%, मथुरा 63.28%, आगरा 60.17% मतदान हुआ है। इसमें भी खास बात यह है कि शहरी इलाकों में ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले कम मतदान हुआ है।
मेरठ में कुल मतदान 65 प्रतिशत हुआ है लेकिन ग्रामीण अंचल की किठौर विधानसभा सीट पर सर्वाधिक 70 प्रतिशत से कुछ ऊपर मतदान हुआ है और सबसे कम मेरठ कैंट विधानसभा सीट पर 61 प्रतिशत के करीब मतदान हुआ है। इसी तरह सिवाल खास में 69 प्रतिशत 65 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ है। यानी जिन सीटों और जिलों में जाट और किसानों की तादाद अच्छी है, वहां अधिक वोट पड़े हैं।
यदि यह वोट कृषि कानूनों के विरोध में चले किसान आंदोलन की वजह से पड़ें हैं तब भाजपा मुश्किल में फंस सकती है। इसमें बसपा के प्रभाव का घटना और कांग्रेस की रणनीति भाजपा को फायदा पहुंचाती प्रतीत नहीं आती। ऐसे में विश्लेषकों का यह अनुमान लगाना जायज ही दिखता है कि सत्तारूढ़ दल का ग्राफ पश्चिमी उत्तरप्रदेश में नीचे की तरफ खिसक रहा है।