झूट की होती है बोहतात सियासत में सच्चाई खाती है मात सियासत में दिन होता है अक्सर रात सियासत में गूँगे कर लेते हैं बात सियासत में और ही होते हैं हालात सियासत में जायज़ होती है हर बात सियासत में
सभी उसूलों वाले आदर्शों वाले जोशीले और जज़्बाती नरों वाले मर्दाना तेवर वाली मूँछों वाले सच्चाई के बड़े बड़े दावों वाले बिक जाते हैं रातों रात सियासत में जायज़ होती है हरबात सियासत में
दिये तेल बिन जगमग जगमग जलते हैं सूखे पेड़ भी बे मौसम ही फलते हैं खोटे सिक्के खरे दाम में चलते हैं लंगड़े लूले भी बल्लियों उछलते हैं लम्बे हो जाते हैं हात सियासत में जायज़ होती है हर बात सियासत में
वोटों के गुल जब कुर्सी पर महकेंगे नोटों के बुलबुल हर जानिब चहकेंगे बर्फ़ के तोदे अंगारों से दहकेंगे ख़ाली पैमाने झूमेंगे बहकेंगे होगी बिन बादल बरसात सियासत में जायज़ होती है हर बात सियासत में
इंसाँ कहना पड़ता है शैतानों को दाना कहना पड़ता है नादानों को ख़्वाहिशात को, ख़्वाबों को, अरमानों को रोकना पड़ता है उमड़े तूफ़ानों को काम नहीं आते जज़्बात सियासत में जायज़ होती है हर बात सियासत में
जितने रहज़न हैं रहबर हो जाते हैं पस मंज़र सारे मंज़र हो जाते हैं पैर हैं जितने भी वो सर हो जाते हैं बोने सारे क़द आवर हो जाते हैं बढ़ते हैं सब के दरजात सियासत में जायज़ होती है हर बात सियासत में
जब हालात की सख़्ती से घबरा जाऊँ ख़ुशहाली की मंज़िल मैं भी पा जाऊँ सच्चे रस्ते से मैं भी कतरा जाऊँ जी करता है राही मैं भी आ जाऊँ मार के सच्चाई को लात सियासत में जायज़ होती है हर बात सियासत में