क़तआत : रूपायन इन्दौरी

Webdunia
कुछ करम में कुछ सितम में बाँट दी
कुछ सवाल-ए-बेश-ओ-कम में बाँट दी
ज़िन्दगी जो आप ही थी क़िब्लागाह
हम ने वो देर-ओ-हरम में बाँट दी

शाम का वक़्त है शिवाले में
दीप जलते हैं आरती के लिए
उसी मन्दिर में एक नन्हा दिया
टिमटिमाता है रोशनी के लिए

जो क़दम है वो हस्बे-हाल रहे
और फिर उसपे तेज़ चाल रहे
देश की ख़ैर चाहने वालों
आग जंगल की है ख़्याल रहे

पहले ये ख़ौफ़ था मेरे दिल में
तुमने ठुकरा दिया तो क्या होगा
अब में इस फ़िक्र में परेशाँ हूँ
तुमने अपना लिया तो क्या होगा

हादिसों से गुज़र चुके थे हम
मुश्किलों से उभर चुके थे हम
अपना होने का जब हुआ एहसास
ज़िन्दगी ख़त्म कर चुके थे हम
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

विमान निर्माता बोइंग है ऊंची दुकान, फीके पकवान

बारिश के मौसम पर सबसे खूबसूरत 10 लाइन

क्या कोलेस्ट्रॉल में आलू खाना सही है? जानिए आलू खाना कब नुकसानदायक है?

इन 5 लोगों को नहीं खाना चाहिए चॉकलेट, सेहत पर पड़ सकता है बुरा असर

कैसे होती है विश्व युद्ध की शुरुआत, जानिए क्या हर देश का युद्ध में हिस्सा लेना है जरूरी

सभी देखें

नवीनतम

ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मददगार हैं आसानी से मिलने वाले ये 9 आयुर्वेदिक हर्ब्स

बाल कविता: मैं और मेरी दुनिया

ये है मोबाइल के युग में किताबों का गांव, पढ़िए महाराष्ट्र के भिलार गांव की अनोखी कहानी

रिश्तों की मशीनों में उलझी युवा पीढ़ी, युवाओं को रूकने की नहीं, रुक रुककर जीने की है जरूरत

मानसून स्किन केयर टिप्स: त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखेंगे ये 6 उपाय