क़तआत : रूपायन इन्दौरी

Webdunia
कुछ करम में कुछ सितम में बाँट दी
कुछ सवाल-ए-बेश-ओ-कम में बाँट दी
ज़िन्दगी जो आप ही थी क़िब्लागाह
हम ने वो देर-ओ-हरम में बाँट दी

शाम का वक़्त है शिवाले में
दीप जलते हैं आरती के लिए
उसी मन्दिर में एक नन्हा दिया
टिमटिमाता है रोशनी के लिए

जो क़दम है वो हस्बे-हाल रहे
और फिर उसपे तेज़ चाल रहे
देश की ख़ैर चाहने वालों
आग जंगल की है ख़्याल रहे

पहले ये ख़ौफ़ था मेरे दिल में
तुमने ठुकरा दिया तो क्या होगा
अब में इस फ़िक्र में परेशाँ हूँ
तुमने अपना लिया तो क्या होगा

हादिसों से गुज़र चुके थे हम
मुश्किलों से उभर चुके थे हम
अपना होने का जब हुआ एहसास
ज़िन्दगी ख़त्म कर चुके थे हम
Show comments

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों के साथ जा रहे हैं घूमने तो इन 6 बातों का रखें ध्यान

कार्ल मार्क्स: सर्वहारा वर्ग के मसीहा या 'दीया तले अंधेरा'

राजनीति महज वोटों का जुगाड़ नहीं है

जल्दी निकल जाता है बालों का रंग तो आजमाएं ये 6 बेहतरीन टिप्स

मॉरिशस में भोजपुरी सिनेमा पर व्‍याख्‍यान देंगे मनोज भावुक

गर्मी के मौसम में कितनी बार सनस्क्रीन लगाना चाहिए, जानिए सही समय