डॉ. मेहबूब राही के अशआर

Webdunia
Aziz AnsariWD
वो बात तुमसे जो शायद कभी न कह पाऊँ
मैं आज तुमसे वही बात कहने वाला हूँ।

मारअके फ़तहा किए बेसर-ओ-सामानी में
हम से दानाइयाँ सरज़द हुईं नादानी में।

है ज़िन्दगी तो बात करें ज़िन्दगी की हम,
आएगी जब अजल तो करेंगे अजल की बात।

मुद्दई भी वही, मुनसिफ़ भी वही, क़ातिल भी,
रूबरू किसके यहाँ किसकी शिकायत कीजे।

तुम जो कहते हो बड़ी है तो बड़ी है दुनिया
वरना देखो मेरे क़दमों पे पड़ी है दुनिया।

मोतियों की हुई बरसात मोहल्ले भर में,
मेरे आँगन में बरसते रहे कंकर पत्थर।

कल किसी और तलातुम से गुज़रना है हमें,
आज मिल लीजे, कल हम नहीं मिलने वाले।

वो बूँद-बूँद का इक दिन हिसाब माँगेंगे,
पिला पिला के लहू अब जो पालते हैं मुझे।

प्यास से बातिन की चारों जाँ बलब,
अब्र-ए-तर, दरिया, समन्दर और मैं।

करम एहबाब के हम पर बहुत हैं,
हमारी पीठ पर ख़ंजर बहुत हैं।

लफ़्ज़ तीखा ज़ुबान से निकला,
तीर जैसे कमान से निकला।

असनाफ़-ए-शे'र यूँ तो हैं गुलहाए रंगारंग,
राही ग़ज़ल की बात मगर है ग़ज़ल की बात।

मेरी परवाज़ को सारी दिशाएँ तंग पड़ती हैं,
के जितने आसमाँ हैं मेरे बाल-ओ-पर में रहते हैं।

बाहर तो है हद्दे नज़र तक धुआँ, आग और गर्द-ओ-ग़ुबार,
क्या होगा इक अपने घर के अन्दर गुलशन रखने से।

जला बैठोगे नाहक़ हाथ अपना,
मियाँ! आँसू है ये शबनम नहीं है।

अगर अल्लाह की वेहदानियत तसलीम करते हो,
तो फिर इंसान को ख़ानों में क्यों तक़सीम करते हो।

नीलाम ख़्यालात की हुरमत नहीं करते
हम शायरी करते हैं तिजारत नहीं करते।

जिसे सौ सौ जतन से जमआ करता है हर इक इंसाँ
बवक़्त-ए-वापसी सारा असासा छोड़ जाता है।

पीठ दिखा कर भाग आते हो मैदाँ से
घर में बैठे तीरंदाज़ी करते हो।

हर नेकी करते हो शोहरत की ख़ातिर
अल्लाह से भी सौदेबाज़ी करते हो।

लोग अब ख़्वाब भी आँखों से चुरा लेते हैं
अपनी पलकों के दरीचों को खुला मत रखना

बड़े इख़लास से मिलता है मुझसे
मुझे इस शख़्स से ख़दशा बहुत है

रखता है मेरे घर के दर-ओ-बाम को रोशन
हमसाए की खिड़की से निकलता हुआ सूरज

जिन बबूलों से मिले छाँव वही पीपल हैं
प्यास जो क़तरा बुझाए उसे दरिया कहिए

रात भर जश्न मनाएँगे सियह बख़्ती का
ज़ख़्म जागेंगे, अलम जागेंगे, हम जागेंगे।

ज़रा से झूट से मैं बाज़ी जीत सकता था
ये हार मेरी सच्चाई की सनद भी है

सुकूँ में शे'र होने को तो होते हैं मगर राही
ग़ज़ल का लुत्फ़ तो जज़बों की तुग़यानी में होता है

मुद्दतों हम रहे इस ख़ाम ख़्याली में के लोग
जो नज़र आते हैं ऊपर वही अन्दर होंगे।

साया है न फल, ताड़ के मानिन्द खड़े हो
तुम ऎसे बड़े भी हो तो क्या ख़ाक बड़े हो

शे'र करता है वाक़ेआत को जो
वो सुख़नवर कहाँ सहाफ़ी है।

हँसते हैं सब दीवाने पर
दीवाना सब पर हँसता है

इस दौर की तालीम का मेअयार अजब है
तालीम तो आती है जेहालत नहीं जाती।

कुछ ज़रूरी नहीं फ़रिश्ता बने
आदमी आदमी हो काफ़ी है।

घर जब किसी मजबूर का जलता है मेरे यार
साँसों से धुआँ मेरी निकलता है मेरे यार।

मसअला जान बचाने का नहीं है हरगिज़
मसअला ये है के इज़्ज़त को बचाएँ कैसे।

गली मोहल्ले वाले लेकिन राही से नावाक़िफ़ हैं
कहने को तो शहरों शहरों उसकी है पहचान बहुत।

हम भी ऐसे दौर में शायर हुए राही के जब
क़द्र-ए-शायर, क़ीमत-ए-शे'र-ओ-अदब कुछ भी नहीं

आती जाती हुई हर साँस ख़ता लगती है
ज़ीस्त नाकरदा गुनाहों की सज़ा लगती है

प्रस्तुति : अज़ीज़ अंसारी
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

पुनर्जन्म के संकेतों से कैसे होती है नए दलाई लामा की पहचान, जानिए कैसे चुना जाता है उत्तराधिकारी

हिंदू धर्म से प्रेरित बेबी गर्ल्स के अ से मॉडर्न और यूनिक नाम, अर्थ भी है खास

बिना धूप में निकले कैसे पाएं ‘सनशाइन विटामिन’? जानिए किन्हें होती है विटामिन डी की कमी?

क्या दुनिया फिर से युद्ध की कगार पर खड़ी है? युद्ध के विषय पर पढ़ें बेहतरीन निबंध

शेफाली जरीवाला ले रहीं थीं ग्लूटाथियोन, क्या जवान बने रहने की दवा साबित हुई जानलेवा!

सभी देखें

नवीनतम

महाराष्‍ट्र की राजनीति में नई दुकान... प्रोप्रायटर्स हैं ठाकरे ब्रदर्स, हमारे यहां मराठी पर राजनीति की जाती है

खाली पेट पेनकिलर लेने से क्या होता है?

बेटी को दीजिए ‘इ’ से शुरू होने वाले ये मनभावन नाम, अर्थ भी मोह लेंगे मन

चातुर्मास: आध्यात्मिक शुद्धि और प्रकृति से सामंजस्य का पर्व

कॉफी सही तरीके से पी जाए तो बढ़ा सकती है आपकी उम्र, जानिए कॉफी को हेल्दी बनाने के कुछ स्मार्ट टिप्स