बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना

Webdunia
गुरुवार, 7 अगस्त 2008 (15:58 IST)
पेशकश : अज़ीज़ अंसार ी

बहुत मुश्किल है दुनिया का स ंवरना
तेरी ज़ुल्फ़ों का पच-ओ-ख़म नहीं है------मजाज़

कहते हैं के आता है मुसीबत में ख़ुदा याद
हम पर तो वो गुज़री के ख़ुदा भी न रहा याद----सिकन्दर अली वज्द

पहुँचे जिस वक़्त मंज़िल पे तब ये खुला
ज़िन्दगी रास्तों में बसर हो गई ---------------वामिक़ जोनपुरी

वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुरसत
हमें गुनाह भी करने को ज़िन्दगी कम है -------आनंद नारायण मुल्ला

एक मुद्दत से तेरी याद भी आई नहीं हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं -------फ़िराक़

जो ग़म हद से ज़्यादा हो ख़ुशी नज़दीक होती है
चमकते हैं सितारे रात जब तारीक होती है -------अफ़सर मेरठी

इक मोअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का -------फ़ानी

सुनी एक भी बात तुमने न मेरी
सुनी हमने सारे ज़माने की बातें -----अमीर मीनाई

अंगूर में थी ये शै पानी की चार बूँदें
जिस दिन से खिंच गई है तलवार हो गई है -----अमीर मीनाई

आए भी लोग, बैठे भी, उठ कर चले गए
मैं जा ही ढूँढता तेरी महफ़िल में रह गया ---आतिश

शायद इसी का नाम मोहब्बत है शैफ़ता
इक आग सी है सीने के अन्दर लगी---------शैफ़ता
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