ज़ेबा जोनपुरी के अशआर

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* अन्दाज़ कुछ अलग ही मेरे सोचने का है
मंज़िल का सब को शौक़ मुझे रास्ते का है

* तुम से मिलकर भी लोग थे मायूस
और बिछड़ कर भी हाथ मलते हैं

* वो जब आए तो मेरा हाल न देख
और चला जाए तब मिज़ाज न पूछ

* रहती है छाँव क्यों मेरे आँगन में थोड़ी देर
इस जुर्म पर पड़ोस का वो पेड़ कट गया

* तुम्हारे बारे में इक बात मैंने पूछी थी
न एहले-होश ही समझा सके न दीवाने --- होश वाले

* लोग कुछ और रंग दे देंगे
कोई नेकी भी बरमला* न करो ---- सबके सामने

* कुछ तो मौक़ा परस्त हैं हम भी
और कुछ वक़्त की ज़रूरत है

* आग में कौन कूद सकता है
हाँ! मगर तेरे चाहने वाले

* हर बार यूँ मिले के कोई बात रह न जाए
हर बार यूँ हुआ के कोई बात रह गई

* ये क्या कहा के मेरे आस-पास कोई नहीं
कोई नहीं है तो फिर किससे बात करता हूँ
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