असरार नारवी (इब्ने सफ़ी) की ग़ज़ल

Webdunia
शनिवार, 12 जुलाई 2008 (11:08 IST)
यही है खाक नशीनों की ज़िन्दगी की दलील
क़ज़ा से दूर है ज़र्रों का इंकिसारे जमील

वही है साज़ उभारे जो डूबती नबज़ें
वही है गीत नफ़स में जो हो सके तहलील

दिखाई दी थी जहाँ से गुनाह की मंज़िल
वहीं होती थी दिल-ए-नासबूर की तशकील

समझ में आएगा तफ़सीर-ए-ज़िन्दगी क्या खाक
कि हर्फ़-ए-शौक़ है अजमाल-ए-बेदिली तफ़सील

ये शाहराह-ए-मोहब्बत है आगही कैसी
बुझा सको तो बुझा दो शऊर की क़न्दील

सदा-ए-नाज़ भी आती है हम रकाब-ए-नसीम
न हो सकी है न होगी बहार की तकमील

हज़ार ज़ीस्त है पाइन्दातर मगर असरार
अजल न हो तो बने कौन बार-ए-ग़म का कफ़ील
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या होता है DNA टेस्ट, जिससे अहमदाबाद हादसे में होगी झुलसे शवों की पहचान, क्या आग लगने के बाद भी बचता है DNA?

क्या होता है फ्लाइट का DFDR? क्या इस बॉक्स में छुपा होता है हवाई हादसों का रहस्य

खाली पेट ये 6 फूड्स खाने से नेचुरली स्टेबल होगा आपका ब्लड शुगर लेवल

कैंसर से बचाते हैं ये 5 सबसे सस्ते फूड, रोज की डाइट में करें शामिल

विवाह करने के पहले कर लें ये 10 काम तो सुखी रहेगा वैवाहिक जीवन

सभी देखें

नवीनतम

स्टडी : नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं को अस्थमा का खतरा ज्यादा, जानिए 5 कारण

हार्ट हेल्थ से जुड़े ये 5 आम मिथक अभी जान लें, वरना पछताएंगे

बारिश के मौसम में मच्छरों से होने वाली बीमारियों से कैसे बचें? जानिए 5 जरूरी टिप्स

विश्व योग दिवस 2025: पढ़ें 15 पावरफुल स्लोगन, स्वस्थ रखने में साबित होंगे मददगार

वर्ष का सबसे लंबा दिन 21 जून को, जानें कारण और महत्व