ग़ज़लें : ख्वाजा मीर दर्द देहलवी

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1.
मुझको तुझसे जो कुछ मोहब्बत है
ये मोहब्बत नहीं है आफ़त ह ै

लोग कहते हैं आशिक़ी जिसको
मैं जो देखा बड़ी मुसीबत ह ै

बन्दे एहकामे अक़्ल में रहन ा
ये भी इक नौ की ही हिमाक़त ह ै

एक ईमान है बिसात अपन ी
न इबादत न कुछ रियाज़त ह ै

आ बुतों के फ़ुसूँ के दाम में यू ँ
दर्द ये भी ख़ुदा की क़ुदरत ह ै
---------------

2.

हमने किस रात नाला सर न किय ा
पर उसे आह ने असर न किय ा

सबके हाँ तुम हुए करम फ़रम ा
इस तरफ़ को कभी गुज़र न किय ा

क्यूँ भवें तानते हो बन्दानवा ज़
सीना किस वक़्त में सिपर न किय ा

कितने बन्दों को जान से खोय ा
कुछ ख़ुदा का भी तूने डर न किय ा

देखने को रहे तरसते हम
न किया रहम तूने पर न किय ा

आप से हम गुज़र गए कब क े
क्या है ज़ाहिर में गो सफ़र न किय ा

कौन सा दिल है वो के जिस में आह
ख़ाना आबाद तूने घर न किय ा

तुझसे ज़ालिम के सामने आय ा
जान का मैंने कुछ ख़तर न किय ा

सबके जोहर नज़र में आए दर् द
बेहुनर तूने कुछ हुनर न किया।

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