ग़ालिब

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नक़्श फ़रयादी है किसकी शोख़ि-ए-तेहरीर क ा
काग़जी है पैर हन हर पैकर ए तस्वीर क ा

काव-ए-काव-ए-सख़्त जानीहा-ए-तन्हाई न पू छ
सुबह करना शाम क ा, लाना है जू-ए-शीर क ा

ज़ज्बः-ए-बेइख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहि ए
सीनः-ए-शमशीर से बाहर ह ै, दम शमशीर क ा

आगाह ी, दाम-ए-शनीद न, जिस क़दर चाह े, बिछा ए
मुद् द'आ' अंका ह ै, अपने आलम-ए-तक़रीर क ा

बसकि हू ँ, ग़ालि ब, असीरी में भी आतश ज़ेर-ए-प ा
मू-ए-आतश दीद ः, है हल्क़ः मिरी ज़ंजीर का।
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