ग़ज़लें : अख़्तर शीरानी

Webdunia
बुधवार, 6 अगस्त 2008 (15:10 IST)
पेशक श : अज़ीज ़ अंसार ी

1. दिल में 'ख़्याल-ए-नर्गिस-ए-जानाना' आ गया
फूलों से खेलता हुआ दीवाना आ गया

बादल के उठते ही 'म-ओ-पैमाना' आ गया----------
बिजली के साथ साथ 'परीख़ाना' आ गया-- ( परियों का घर)

मस्तों ने इस अदा से किया 'रक़्स-ए-नौबहार'- ( नई बहार की खुशी)
पैमाना क्या कि 'वज्द' में मैख़ाना आ गया---- ( नशे की हालत में)

उस 'चश्म-ए-मौफ़रोश की तासीर' क्या कहूँ--- ( शराब बेचने वाली)
आँखों तक आज आप ही पैमाना आ गया ( आँख का असर)

मालूम किस को 'क़ैस' की दीवानगी की शान------ ( मजनू)
हंगामा सा बपा है कि दीवाना आ गया

अख़्तर ग़ज़ब थी 'एह्द-ए-जवानी की दास्ताँ'- ( जवानी की कहानी)
आँखों के आगे एक परीख़ाना आ गया

2. झूम कर उठ्ठी है फिर 'कोहसार' से काली घटा--- ( परबत)
कैसी मस्ताना घटा है, कितनी मतवाली घटा

देखना कैसा ये बरखा रुत ने जादू कर दिया
हर कली बिजली बनी है और हर डाली घटा

' सबज़ा-ओ-गुल' झूमते हैं, 'दश्त-ओ-गुलशन' मस्त हैं
मैकदे बरसा रही है, हो के मतवाली घटा

छाई है किस धूम से 'गुलज़ार-ओ-कोह-ओ-दश्त' पर
आह ये पहली घटा, रंगीं घटा, काली घटा

उनकी 'ज़ुल्फ़-ए-मुश्क्बू' की बू चुरा कर लाई है
वरना क्यों आती है इतराती हुई काली घटा

' सब्ज़' मख़मल सी बिछी जाती है 'फ़र्श-ए-ख़ाक पर
हर तरफ़ लहका रही है कैसी हरयाली घटा

दिल से आती हैं 'सदाएँ','बेख़ुदी-ए-शौक़ में'------- ( आवाज़े ं)
मेरे सीने में समा जाए ये मतवाली घटा

उनको भी 'हमराह' ले आती तो कोई बात थी------ ( साथ में)
वरना अख़्तर सच ये है किस काम की काली घटा

3. न छेड़ 'ज़ाहिद-ए-नादाँ'-शराब पीने दे--- ( धार्मिक उपदेशक)
शराब पीने दे, 'ख़ानाख़राब' पीने दे------- ( बुरा आदमी)

अभी से अपनी नसीहत का 'ज़ेहर' दे न मुझे
अभी तो पीने दे और बेहिसाब पीने दे

मैं जानता हूँ छलकता हुआ गुनाह है ये
तो इस गुनाह को 'बेएहतिसाब' पीने दे------ ( बिना हिसाब किए)

फिर ऎसा वक़्त कहाँ, हम कहाँ, शराब कहाँ
' तिलिस्म-ए-देह्र' है 'नक़्श-ए-बरआब' पीने द े--(दुनिया का जादू), (पानी के ऊपर का रंग)

मेरे दिमाग़ की दुनिया का 'आफ़ताब' है ये------( सूरज)
मिला के बर्फ़ में ये आफ़ताब पीने दे

किसी हसीना के बोसों के क़ाबिल अब न रहे
तो इन लबों से हमेशा शराब पीने दे

समझ के उस को 'ग़फ़ूरुर रहीम' पीता हूँ---( सब पर म ेहरबान)
न छेड़ 'ज़िक्र-ए-अज़ाब-ओ-सवाब' पीने दे- ( पाप-पुण्य की बात)

जो रूह हो चुकी इक बार दाग़दार मेरी
तो और होने दे लेकिन शराब पीने दे

शराबख़ाने में ये शोर क्यों मचाया है
ख़मोश अख़्तर-ए-ख़ानाख़राब पीने दे

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