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ग़ज़ल : अकबर इलाहाबादी
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किस किस अदा से तूने जलवा दिखा के मारा
आज़ाद हो चुके थे, बन्दा बना के मारा
अव्वल बनाके पुतला, पुतले में जान डाली
फिर उसको ख़ुद क़ज़ाकी सूरत में आके मारा
आँखों में येरी ज़ालिम छुरयाँ छुपी हुई हैं
देखा जिधर को तूने पलकें उठाके मारा
ग़ुंचों में आके मेहका, बुल्बुल में जाके चेहेका
इसको हँसा के मारा, उसको रुला के मारा
सोसन की तरह अकबर, ख़ामोश हैं यहाँ पर
नरगिस में इसने छिप कर आँखें लड़ा के मारा
2. कट गई झगड़े में सारी रात वस्ल-ए-यार की
शाम को बोसा लिया था, सुबह तक तकरार की
ज़िन्दगी मुमकिन नहीं अब आशिक़-ए-बीमार की
छिद गई हैं बरछियाँ दिल में निगाह-ए-यार की
हम जो कहते थे न जाना बज़्म में अग़यार की
देख लो नीची निगाहें होगईं सरकार की
ज़हर देता है तो दे, ज़ालिम मगर तसकीन को
इसमें कुछ तो चाशनी हो शरब-ए-दीदार की
बाद मरने के मिली जन्नत ख़ुदा का शुक्र है
मुझको दफ़नाया रफ़ीक़ों ने गली में यार की
लूटते हैं देखने वाले निगाहों से मज़े
आपका जोबन मिठाई बन गया बाज़ार की
थूक दो ग़ुस्सा, फिर ऐसा वक़्त आए या न आए
आओ मिल बैठो के दो-दो बात कर लें प्यार की
हाल-ए-अकबर देख कर बोले बुरी है दोस्ती
ऐसे रुसवाई, ऐसे रिन्द, ऐसे ख़ुदाई ख़्वार की
3. कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की मेहफ़िल है
इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।
ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है
जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है
हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है
4. शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा
दिल में घर करके मेरी जान ये परदा कैसा
आप मौजूद हैं हाज़िर है ये सामान-ए-निशात
उज़्र सब तै हैं बस अब वादा-ए-फ़रदा कैसा
तेरी आँखों की जो तारीफ़ सुनी है मुझसे
घूरती है मुझे ये नर्गिस-ए-शेहला कैसा
ऎ मसीहा यूँ ही करते हैं मरीज़ों का इलाज
कुछ न पूछा के है बीमार हमारा कैसा
क्या कहा तुमने के हम जाते हैं दिल अपना संभाल
ये तड़प कर निकल आएगा संभलना कैसा
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