ग़ज़ल----फि़जा इब्न फ़ैज़ी

Webdunia
शनिवार, 12 जुलाई 2008 (11:40 IST)
दिलनशीं ज़ुल्फ़ का आहंग लगे
हर अंधेरा मुझे गुल रंग लगे

मैं कि सीक़लगर मआनी ठहरा
आईने मुझको मिले ज़ंग लगे

कुंज-ए-हस्ती हो कि सहरा-ए-अदम
अर क़बा मुझको बहुत तंग लगे

आदमी तो है खुदा का साया
और मुझको सबब-ए-नंग लगे

गुलरुखो! क्या हो अगर तुमको भी
ज़िन्दगी दस्त-ए-तहे संग लगे

हाय! अफ़सुर्दा निगाही अपनी
धूप भी साए के हमरंग लगे

शर्त है उससे मुखातिब होना
नस्र भी शे'र का आहंग लगे
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