अतीक़ की ग़ज़लें

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Aziz AnsariWD
1. बेरवानी सी इक रवानी का
ज़ाएचा लिख रहा हूँ पानी का

अर्शपैमा बना गया है मुझे
मसअला मेरी बेमकानी का

तेह को ऊपर उछाल लाओगे
जब भी समझोगे भेद पानी का

दे गया हूँ निशान दुनिया को
बे निशाँ होके हर निशानी का

चख रहा हूँ नफ़स नफ़स पल पल
ज़ाएक़ा, मर्ग-ए-नागहानी का

जिसको समझे थे हम सुकून-ए-दवाम
वो भी इक बुलबुला था पानी का

जो अभी तक लिखा गया न 'अतीक़'
ऐसा इक बाब हूँ कहानी का

2. ख़ौल से अपने, न बाहर होना
ये तो है, दीदा-ए-बीना खोना

जब सराबों के शनावर होना
तुम भी सहरा में समन्दर बोना

ऐसा अंधों में है रोना धोना
जैसे बहरों मे ग़ज़ल ख़्वाँ होना

जब थका डाले सफ़र जीवन का
अपने अन्दर ही सिमट कर सोना

प्यास ने डस के सुझाया मुझको
सेरलब, ख़ुद ही को पी कर होना

लोग बौने हैं तो बौने ही सही
तुम मेरे क़द के बराबर होना

मेरा मैं जब कभी ललकारे है
मुझको आ जाए है ख़ुद पर रोना

तेरी आमद से मेरे आँगन का
कितना गुलनार है कोना कोना

उनसे मिल कर ही ये समझोगे 'अतीक़'
ख़ुद को पाना ही है ख़ुद को खोना

ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ
ख़ौल----अवक़ात--कवर---लिहाफ़
दीदा-ए-बीना-----मन ई आँख
सराब-----धूप में रेगिस्तान की रेत पर पानी होने का धोका
शनावर ----तैराक, सहरा----- मरुस्थल
ग़ज़ल ख़्वाँ होना-----ग़ज़ल गाना
सेर-ए-लब ------होंटों की प्यास बुझाना
आमद से -------आने से

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