त्रिमोहन की ग़ज़लें

Webdunia
उदास शहर में जब जब भी हँसी आती है
किसी ग़रीब के चहरे पे चिपक जाती है

किवाड़ चौखटों के साथ उखड़ते जाते हैं
कभी हवा ये करिशमा भी कर दिखाती है

भले ही सूख गईं हैं ये पत्तियाँ लेकिन
इन्हें दबाओ तो इन से भी चीख़ आती है

ये पत्थरों का शहर है यहाँ हैं पत्थर सब
मेरी आवाज़ भी टकरा के लौट आती है

बहन का रूठना, भाभी का उसको समझाना
शहर में गाँव की हर बात याद आती है

वहाँ अब आम भी बौरा के लद गया शायद
वो भीनी गंध हवाओं में गुनगुनाती है

2. कितनी है आसान ग़ज़ल
पर शायर की जान ग़ज़ल

यही दुआ है मालिक से
मेरी हो पहचान ग़ज़ल

कच्चे घरों की है इज़्ज़त
महलों की ये शान ग़ज़ल

इस में है मीरा की भक्ति
बेजू की है तान ग़ज़ल

फाक़ा मस्तों में है मस्त
दुनिया की धनवान ग़ज़ल

तलवारों का काम नहीं
मेरा तीर-कमान ग़ज़ल

बाहर जैसे कोई परी
अन्दर लहूलुहान ग़ज़ल

मीर का दीनोमज़हब ये
ग़ालिब का दीवान ग़ज़ल

गाँव शहर की बात नहीं
पूरा हिंदुस्तान ग़ज़ल
Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

21 मई : राजीव गांधी की पुण्यतिथि, जानें रोचक तथ्य

अपनी मैरिड लाइफ को बेहतर बनाने के लिए रोज करें ये 5 योगासन

क्या है Male Pattern Baldness? कहीं आप तो नहीं हो रहे इसके शिकार