राहत इन्दौरी की ग़ज़लें

Webdunia
1. अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे

तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे

लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे

ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे

झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे

अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे

2. अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सोते समय मोबाइल को रखना चाहिए इतनी दूर, जानें क्या है इसका खतरा

रोज खाते हैं इंस्टेंट नूडल्स तो हो जाएं सतर्क! जानें 6 गंभीर नुकसान

क्या आप भी घर पर चलते हैं नंगे पैर? हो सकती हैं ये 5 बीमारियां

बिना काटे घर पर ऐसे बनाएं प्याज का अचार, जानें बेहतरीन फायदे

आपके जीवन के लिए क्यों जरूरी है योग निद्रा, जानें क्या हैं इसके फायदे

सभी देखें

नवीनतम

यह लोकसभा अलग दिखने वाली है, मोदीजी! सब कुछ बदलना पड़ेगा!

सिखों के छठे गुरु, गुरु हर गोविंद सिंह, जानें उनके बारे में

जर्मनी के भारतवंशी रोमा-सिंती अल्पसंख्यकों की पीड़ा

रानी दुर्गावती कौन थीं, जानें उनके बलिदान की कहानी

सेब के सिरके से केमिकल फ्री तरीके से करिए बालों की समस्या का समाधान