लफ्जों की बरसात....

- अजीज अंसारी

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रात गए लफ्जों1 की बरसात हुई
एक मुरस्सा2 नज्म हमारी जात हुई

आंधी आई रस्ते में बरसात हुई
अपनी मंजिल जैसे अपने साथ हुई

छत के ऊपर सावन में भी धूप रही
छत के नीचे आंखों से बरसात हुई

कैसा दौर है झूठों का राज यहां
सच्चाई की सारे जग में मात हुई

मैं मुफ्लिस3 हूं आप रईसेशहर4 सही
ये दुनिया तो दुनिया-ए-दरजात5 हुई

अपने घर अब तुम भी वापस आओ 'अजीज'
' सन्नाटों ने शोर मचाया रात हुई।'

1. शब्दों 2. बहुत अच्छी 3. निर्धन 4. नगर का राजा 5. भेदभाव
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