ग़ज़लें : शायर मक़सूद नश्तरी

Webdunia
बुधवार, 16 अप्रैल 2008 (11:39 IST)
Aziz AnsariWD
हमेशा दिल में जिगर में नज़र में रहता है
वो पाक ज़ात है, पाकीज़ा घर में रहता है

कली में, गुल में, सबा में, शजर में रहता है
हो गर शऊरे नज़र तो नज़र में रहता है

लहू की शक्ल में सहरा नवर्द दीवाना
रवाँ-दवाँ है हमेशा सफ़र में रहता है

शबाब उसको जला देगा बस इसी डर से
वो अश्क बन के मेरी चश्मे तर में रहता है

वो एक पैकरे नूरी जिसे ग़ज़ल कहिए
सुख़नवरों के दिलों में, नज़र में रहता है

वो ख़ुशनसीब है मक़सूद इस ज़माने में
जो अपनी माँ की दुआ के असर में रहता है

2.
ये दुआओं का है असर बाबा
मैं सभी में हूँ मोतबर बाबा

आज वो क्यूँ बुझे-बुझे से हैं
हो गया उन पे क्या असर बाबा

मेरी आँखों में डाल कर आँखें
हो गए लोग दीदावर बाबा

अपनी खुद्दारी-ओ-अना की क़सम
झुक न पाया कहीं ये सर बाबा

जो परिन्दे थे नातवाँ कल तक
अब निकल आये उनके पर बाबा

जो घने और सायादार भी थे
कट रहे हैं वही शजर बाबा

सुर्खरूई नसीब हो उसको
कीजे मक़सूद पे नज़र बाबा

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